Friday 12 June 2015

मोहब्ब्त की ना जाने आजतक कितनी परिभाषा दी गई है और आगे भी दी जायेगी। मैनें भी अपने मित्रों के बातचीत, थोडी बहुत समाजिकता और फ़िल्मों के माध्यम से जो कुछ समझा है वो बता रहा हूं। दरअसल बात काफ़ी समय पहले की है जब मेरे एक दोस्त ने पुछा था कि आखिर पता कैसे चलेगा कि उसे किसी से मोहब्ब्त है और असली है क्योकि शुरूवात तो सबके साथ ऐसे ही होती है जब कोई अच्छा लगने लगता है अचानक ।
तब तो मैने लम्बा सा डायलौग मार के उसकी शंका का समाधान किया था कि "जब तुम किसी पार्टी में हज़ारो लोगो के साथ हो और उस समय भी तुम्हरा मन वहां ना रह के किसी और की याद में मे हो और मन करे काश वो इस समय तुम्हारे साथ होता तो समझ लेना तुम्हें उस से प्यार है।" तब तो मैनें ऐसा कह के अपने मोहब्ब्त के ग्यान का लोहा मनवाया था।
समय बीतता गया ग्यान की परते खुलती गई और नए अनुभवो से सामनी हुआ। मेरे हिसाब से लाइफ़ इतनी छोटी है और दुनिया इतनी बडी कि एक जीवन में हर तरह के अनुभव लेना नामुमकिन है तो दुसरो के अनुभवो से भी कभी कभी काम चलाना पड्ता है। अब जाके लगता है कि मोहब्ब्त भी एक आदत है जैसे हमारी अलग अलग आदते होती है जिनके बिना हमारा काम नही चलता, अगर उस आदत से थोडी दूरी हो जाये तो मन बेचैन होने लगता है, उसके पास जाने को मन करता है कुछ कुछ ऐसा हीं।
जरुरी नही कि कोई मेरी बात से सहमत हो लेकिन ऐसे ही लगता है कि जरुरी नही कि मोहब्ब्त एक ही बार हो।जब जब आप किसी से ऐसे जुडे कि आपसे उसकी रोज बातें हो, हर तरह की भावनाओ का आदान प्रदान हो, कोइ एक दिन भी उसके बगैर ना गुज़रे तो धीरे धीरे उसकी आदत सी बन जाती है। यही चीज परिवार के साथ भी होती है। हम एक परिवार में रहते हैं सबके साथ रोज की बातचीत हंसना बोलना, उठना बैठना, और बहुत सारा समय उनके साथ बिताने की एक आदत सी बन जाती है और फ़िर उनके बगैर रहना मुश्किल लगने लगता है।
यही बात एक लड्का लड्की के बीच भी होती है। हो सकता है आप बचपन में किसी और से जुडे हो समय के साथ दुरीयां बढी हो बाते कम हो गई हो फ़िर किसी और से आप मिले हो और उससे आपका रिश्ता कुछ ऐसा बन गया हो कि उसके बिना जीवन मुश्किल लगने लगा हो तो ये कभी भी कितनी बार भी हो सकता है बस निर्भर इस बात पे करता है कि कितने नये लोगो से आप एक ही तरह रह पाते है और किसको अपने जीवन में कितना समय देते हैं।
आप अगर किसी से दिल से बहुत ज्यादा जुडे हो तो एकबार बात कम करना शुरू कर के देखिये शुरू शूरु में तो काफ़ी बुरा लगेगा पर धीरे धीरे जब आपकी आदत कम होती जायेगी आप उसके लिये सामान्य होते जायेंगे हांलाकि ये करना काफ़ी  मुश्किल है। कभी कभी ये काफ़ी कन्फ़्यूजिंग मामला लगता है पर मैंने अभी तक इसे ऐसे ही समझा है। तो चाहते हैं कि दर्द कम हो जीवन में किसी तरह की आदत नही लगाइये। 
॥ना आदत होगी और ना किसी चीज से मोहब्ब्त होगी॥