Tuesday 26 December 2017

लड़का-लड़की एक दूसरे को जानते थे..........

अक्सर किसी छेड़खानी, लड़की पर तेजाब फेंका जाना, सरे-राह कमेंटबाजी या ऐसा कोई मामला जिसमें लड़के द्वारा लड़की को शारीरिक या मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा हो और पुलिस में शिकायत की जाए तो पहला सवाल यही होता है क्या लड़का-लड़की एक-दूसरे को जानते थे, चलो मान लेते हैं ये पूछना जरूरी है लेकिन अगर लड़का-लड़की एक-दूसरे को जानते थे तो क्या लड़के को ऐसा कुछ भी करने का अधिकार मिल जाता है? क्या पुलिस के लिए बस इतना काफी होता है कि बस लड़का-लड़की एक दूसरे को जानते थे इसलिए मामले की जाँच-पड़ताल नहीं की जाए, उस लड़के को नहीं पकड़ा जाए, उसे सजा ना दी जाए, जमानत पर छोड़ दिया जाए ताकि वो उस लड़की को फिर से टॉर्चर कर सके।
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अभी एक खबर पढ़ी कि लड़के ने लड़की को तीन गोलियां मारी, लड़की पीएमसीएच में भर्ती है और पुलिस का बयान है कि लड़का-लड़की एक दूसरे को जानते थे और लड़की के होश में आने के बाद पूछताछ कर आगे की कारवाई की जाएगी। लड़की इंटर की छात्रा है लड़का उस पर शादी करने के लिए दबाव बना रहा था, इससे पहले भी लड़का, लड़की के घर के घर पर गोली चला चुका था। उसने लड़की को धमकी दी थी कि अगर वो मिलने नहीं आएगी तो उसके माँ औऱ भाई को गोली मार देगा। इस वजह से लड़की को बाहर उससे मिलने आना पड़ा और शराब के नशे में धुत लड़के ने उसे गोली मार दी।

मुख्यमंत्री महोदय मुझे नहीं लगता आपके द्वारा चलाए जा रहे किसी भी योजना का कोई फायदा हो रहा है शराबबंदी है लेकिन शराब में धुत लड़के ने उसे सरे-आम गोली मार दी, बाल-विवाह रोकने की आप बात करते हैं लेकिन जो लड़कियां बाल से अब व्यस्क हो चुकी हैं उनके सुरक्षा की कोई जिम्मेदारी आपकी और प्रशासन की है की नहीं और इसमें भी ये बात तो आपके राजधानी पटना की है तो अन्य जगहों पर हालात क्या होंगे इसका अनुमान लगाना इतना मुश्किल नहीं है।
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अब बात लड़कों के मानसिकता की, वो पता नहीं किस दुनिया में जी रहे हैं, ये समझना क्या इतना मुश्किल है लड़की आपकी जागीर नहीं है कि आपकी तरह उसे भी अपने लिए कुछ भी चुनने की स्वतंत्रता संविधान और कानून ने दी है। आप जब रिलेशनशीप में रहते हो और कोई और नई लड़की आपको मिल जाती है तो आप ब्रेकअप कर के आगे बढ़ जाते हो, लड़की भी थोड़-बहुत रो- गाकर चुप हो जाती है लेकिन कोई लड़की जब आपको छोड़ के आगे बढ़ना चाहती है आपका इगो हर्ट हो जाता है, और आप हर हाल में उसे सबक सिखाना चाहते हो, बदला लेना चाहते हो।  क्या आपका इगो किसी लड़की के जान से भी बढ़ कर है कि उसे सबक सिखाने के लिए आप किसी भी हद तक जाने से नहीं चूकते और फिर कहते हैं कि ये प्यार है।

ऐसा नहीं है कि लड़कियाँ भी सब ठीक ही हैं लेकिन बदला लेने के लिए किसी भी हद तक गिरने वाली बात कम से कम उनके अंदर उतनी नहीं है। अक्सर पुलिस,प्रशासन, समाज, परिवार सब लड़कियों के साथ होने वाली ऐसी घटनाओं के लिए उसे ही जिम्मेदार ठहरा देते हैं कि लड़कों से दोस्ती ही क्यों करती हो, लड़कों के साथ घूमती ही क्यों हो, उनसे बात ही क्यों करती हो, क्या इस समस्या का ये समाधान है कि हम एक प्रगतिशील होते समाज को  फिर से उसी स्तर पर ले जाए जहाँ पुरूष को देखकर महिलाएँ घूंघट कर लें और अपना रास्ता बदल लें ऐसी कल्पना से ही डर लगने लगता है।
इस समाज का निर्माण हमारे हाथ में है और हमें ही सोचना होगा कि हमें इसे किस दिशा में ले जाना है, पुलिस को चाहिए ऐसी किसी भी वारदात में दोषी लड़के पर त्वरित और जल्दी कारवाई हो, परिवार लड़की के साथ मजबूती से खड़े हो और उसे ही कसूरवार ना माने, लड़के के परिवार और दोस्तों को चाहिए कि उसे एहसास दिलाए कि हर इंसान को उसकी मर्जी से जीने का हक है। हम में से हर एक को इस बात को समझना होगा और अगर नहीं समझना तो फिर कितना भी शराब, बाल-विवाह, दहेज आदि कुछ भी रोक दो रसातल में जा रहे इस समाज को नहीं रोक सकते।

(अभिषेक)


Wednesday 13 December 2017

इस देश की जमीन केवल उद्दोगपतियों की है और गरीबों के लिए फुटपाथ भी नहीं है......


टूट कर गिरा हुआ छप्पर, गिरी हुई बांस की बल्लियां, बुझा और टूटा हुआ चूल्हा, मरघट सा सन्नाटा और उसके पास आँखों में पानी और जाने कितने सवाल लिए खड़ा चायवाला जाने किस सोच में गुम था। आज वापस घर जाते हुए हुए उसके पास बिके हुए चाय और सिगरेट का हिसाब नहीं होगा,कल सुबह जल्दी जगने की हड़बड़ी नहीं होगी, जब उसे उदास देख बीबी उससे सवाल करेगी तो उन सवालों का सामना वो कैसे करेगा, कुछ ही देर में ऐसे जाने कितने सवाल मैंने उसकी आँखों में पढ़ लिए।

ऑफिस के सामने होने के कारण यह हमारे चाय का अड्डा हुआ करता है जहाँ बैठ के चाय पीते हुए जाने कितने क्रिएटिव आइडियाज हमारे दिमाग में आते हैं, कुछ अलग मीडिया हाउस से भी चाय के शौकिन मित्र यहाँ आते रहते हैं इसलिए हमारे लिए यहीं जगह चिलआउट का प्रॉपर प्लेस भी है, कोई बाहर से भी मिलने आता है तो उसे भी यही कहते हैं कि चाय की दुकान पर बैठो चाय बनवाओ हम आते हैं इसलिए भी इस जगह से एक इमोशनल कनेक्ट बना हुआ है।

आज जब उजड़े हुए इस चाय के दुकान को देखा तो लगा जैसे मेरा घर उजड़ गया है, अजीब सा लग रहा था, काफी देर मैं वहीं खड़ा रहा एक- एक कर के चायवाले को सामान बटोरते देखता रहा पूछा कि क्या हुआ तो उन्होंने कहा कि जेसीबी लेकर आए थे सब उजाड़ के चले गए। मैंने कहा क्यों तो बताया कि ये थोड़े कोई बताता है अचानक आता है ऐसे ही उजाड़ के चला जाता है।

मैं सोचने लगा कि क्या इस देश की जमीन केवल उद्दोगपतियों की है और सरकार जिसे मन करे उसे अपने हिसाब से एलॉट कर देती हैं क्या गरीबों के लिए फुटपाथ भी नहीं है जहाँ ये अपनी जीविका चलाने भर कुछ कमाई कर सके। अगर नियम है तो केवल इनके लिए क्यों है उन मॉल्स के लिए क्यों नहीं है जो अपनी जमीन पर तो मॉल बना लेते हैं बाकि वहां आने वाली गाड़ियाँ सड़कों पर पार्क होती हैं। सड़क पर या फुटपाथ पर दुकान लगाना गलत है लेकिन फिर अपनी जीविका चलाने के लिए ये कहाँ जाएं। शहर के बाहर जाकर चाय की टपरी नहीं ना लगाएंगे।

हर बार चुनावों में यही सुनता हूँ गरीबों का कल्याण करने वाली, गरीबी दूर हटाने वाली, गरीबों की सरकार ये अलग बात है कि गरीबी के बदले गरीबों को ही ये दूर भगाने लगती है। हर बार हम मोहरों की तरह वोट देने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं, हर बार गरीब कह के हमें ही लूटा जाता है, हमारे ही वोट से ये वीआईपी हो जाते हैं और हम वैसे के वैसे। जो आपके द्वार पर आकर खुद को गरीबों का बेटा, चायवाला बताकर आपसे वोट ले जाता है जीतते ही उसे आपसे घिन आने लगती है। वो शासक बन जाता है और आपके लिए दरबार लगाता है और इसे अपनी शान समझता है, आप अपने मन से चाहें तो उसे मिल नहीं सकते। वो  जीत कर शहर को स्वच्छ बनाने के लिए आपके चाय के टपरे को उजड़वा देता है।
इस स्मार्ट होते शहर में ये चाय के टपरे, सब्जी वाले, ठेले वाले सब बदनुमा दाग की तरह लगने लगते हैं जिन्हें उजाड़ना हर सरकार को जरूरी लगता है क्योंकि स्मार्ट शहर में हर चीज मॉल में बिकती हुई ही सुंदर लगती है।

(अभिषेक)





Tuesday 21 November 2017

एक स्वघोषित, स्वनामधन्य सेना के सुयोग्य, कर्मठ और जुझारू कार्यकर्ता से बातचीत.........


प.- जी पद्मावती.......

और पद्मावती का नाम सुनते ही उसकी भुजाएं फड़कने लगी, आँखों से अंगारे निकलने लगे, चेहरा बिल्कुल ड्रैगन की तरह नजर आने लगा, मैंने पूछा भाई क्या हुआ तो उसने मुंह से आग की लपटें निकालते हुए कहा तुझे पता नहीं मैं एक स्वघोषित सेना में बतौर मीडिया सलाहकार काम करता हूँ और मेरा काम ही यही है कि किसी भी हालत में किसी की जुबान से श्री श्री 1008 परमपूजनिया राजमाता पद्मावती जी का नाम नहीं निकलना चाहिए। अरे पापी, नीच, नराधम जिस ने अपने देश के लिए जान दे दी उनका नाम तु अपनी गंदी जुबान से लेता है तुझे शर्म नहीं आती.....


प.- मैंने कहा भाई मैंने तो नाम ही लिया बस....कुछ कहा तो नहीं अभी....

उसने कहा कि नाम भी नहीं ले सकते इस नाम पर ही करणी सेना ने कॉपीराइट करा रखा है जैसे तुम नाम लोगे हम आगे की सारी बातें समझ जाएंगे और पुरूष वर्ग की जुबान और स्त्री वर्ग के लिए नाक काटने का फतवा जारी कर देंगे। इतना ही नहीं हमारी सेना का एक भाग सोशल मीडिया पर बस इसलिए सक्रीय है कि तुम जैसों के फेसबुक, ट्वीटर का प्रोफाइल ढ़ूंढ़ कर तुम्हें ट्रोल कर सके।


प.- भाई लेकिन मैंने तो पढ़ा है कि फिल्म के पहले लिखा होता है इस कहानी के पात्र और घटनाएं काल्पनिक हैं...

पात्र नहीं कुपात्र हैं ये....ये सब मिल के देश का इतिहास बदलना चाहते हैं लेकिन इन्हें पता नहीं है कि हम इनका भविष्य और शारीरिक भूगोल बदल देंगे। याद है ना पिछले साल पड़ाका बजाया था गाल पर, लगता है गूंज भूल गए इतनी जल्दी इसलिए हमलोगों धमकियों का लेवल बढ़ा दिया है इनलोगों को मारने के लिए इनाम का भी ऑप्शन लेकर आए हैं।


प.- भविष्य को लेकर आपकी क्या योजनाएं हैं

देखिए....भविष्य हमारा घनघोर रूप से सुरक्षित है....देश बाद में सुरक्षित होगा पहले हमें इसका इतिहास सुरक्षित करना है...और अपने भविष्य के लिए हमलोग चुनाव लड़ेंगे और इस देश की बौड़म जनता पर हमें पूरा भरोसा है कि हमें जिताएगी भी....और आपका जैसे कि भरपूर मनोरंजन हम लगातार कर रहे हैं आगे भी करते रहेंगे...भंसाली जी को भी हम धन्यवाद देना चाहते हैं जिन्होंने अपने माध्यम से हमें अपनी प्रतिभा को निखारने का अवसर प्रदान किया.....और चलिए अब बहुत सवाल जवाब हो गया अब आगे कुछ भी पूछे तो मुंह से नहीं तलवार से बात होगी....तो फौरन निकल लो......जय हो महारानी की....और सुनो, जयकारा लगाए बिना मत जाना.....
प.- जी सर.... जय हो महारानी की........


(अभिषेक)

Tuesday 17 October 2017

कहीं दिवाली के दीये सज रहे हैं
तो कहीं भूख से बच्चे मर रहे हैं
सुबह ऑफिस आने का बाद जो नेट पर पहली न्यूज पढ़ी तो दिमाग के कई सवाल आए, ये अलग बात है कि इस सरकार में सवाल करने की आदत धीरे धीरे कम होती जा रही है फिर भी जरूरत पड़ने पर अपनी बात कहने से कभी पीछे नहीं हटता।
तो खबर थी कि झारखंड में भूख से एक बच्ची की मौत हो गई, बच्ची की माँ ने बताया कि आधार से लिंक नहीं होने की वजह से उसे राशन नहीं मिला जिससे घर में खाना नहीं बन पाया, स्कूल बंद होने की वजह से मीड डे मिल का भी ऑप्शन नहीं था और बच्ची ने भात-भात कहते हुए आँखें मूंद ली।
सबसे पहले मुझे सच में  ये विश्वास नहीं हुआ कि सच में इस युग में भी भूख के कारण किसी की जान जा सकती है, ये अलग बात है कि कल वर्ल्ड भूड डे था और विश्व में सबसे भूखे देशों की लिस्ट में हम काफी आगे हैं लेकिन इसका ये मतलब तो नहीं कि हमारे देश में आज भी लोग भूखे मरते हैं। अरे हमारे यहाँ लाखों की संख्या में काम करने वाले एनजीओ हैं, कई ऐसे लोग हैं जो दिवाली में अपने संस्थान के खुद के माध्यम से खुशियाँ बांटने का काम कर रहे हैं और स्लम्स में जा कर दिवाली मना रहे हैं ऐसे में इस बच्ची का मरना इनके लिए काम करने वालों पर सवाल खड़ा करता है।
इसके अलावा क्या केवल आधार का राशन से लिंक ना होना उसकी मौत के लिए जिम्मेदार है कहना मुझे उचित नहीं लगता, अगर कोई आपके आस पास भूख से तड़प रहा है तो उससे ये थोड़े ना पूछते हैं कि तुम्हें खाना क्यों नहीं मिला, क्या तुम्हारा आधार से राशन लिंक नहीं हुआ है, ये सब सेकेंण्डरी बातें हैं प्राथमिक है उसे भोजन उपलब्ध कराना जो ना हो सका।
इस बच्ची की मौत हमारे आगे बढ़ते और प्रगतिशील होते समाज पर कलंक है, रोज फेसबुक पर कई प्रकार के ज्ञान मिलते हैं, कुछ आलोचना कर दो तो लोग कहते हैं आप देश की आलोचना कैसे कर सकते हैं, और आलोचना देश की नहीं यहाँ के व्यवस्था की है जिसमें आज भी भूख से बच्चे मर जाते हैं कैसे मानूं मैं कि देश आगे बढ़ रहा है। तमाम योजनाएं और घोषणाओं का क्या फायदा जब भूख से तड़प के मरने को विवश हैं लोग।
मुझे भी पता है कि मेरे लिखने से कुछ ऐसा बदलने वाला नहीं है लेकिन मन विचलित जरूर है और परेशान भी कि इस मौत का जिम्मेदार कौन है जुमलेबाजी करने वाली सरकार, आधार से राशन को लिंक करने की योजना, वो राशन की दुकान वाला जिसने उस बच्ची के भूख को नहीं नहीं आधार का राशन से लिंक होना जरूरी समझा, वो तमाम संस्थाएं जो गरीबों को भोजन कराने का दावा करती हैं या मैं और आप जिन्हें इससे फर्क नहीं पड़ता कि अभी भी आपके बगल में कोई भूखा सो रहा है??

(अभिषेक)

Sunday 3 September 2017

बाबाओं का टूटता तिलिस्म
गुरमीत राम रहीम के फैसले के बाद हरियाणा, पंजाब,  थोड़ा दिल्ली और उत्तर प्रदेश में उनके भक्त भावुक होकर उत्पात मचा रहे थे बाबा का ट्वीट उन्हें जितना ही शांत रहने के लिए कहता वो उतने ही आक्रामक और उग्र होकर प्रदर्शन कर रहे थे। इन प्रदर्शनकारियों में महिलाएं, युवा, बुजूर्ग हर तरह के भक्त हैं, वैसे भक्त कहना इन्हें शायद भक्त जैसे शब्द का अपमान करना ही है। ये अलग बात है कि गुरमीत को सजा होने के बाद ज्यादा उत्पाद नहीं हुआ क्योंकि उसके पहले के हालात पर सरकार अपनी किरकिरी करवा चुकी थी।

असल बात ये है कि ऐसे लोग आते कहाँ से हैं और इन्हें ऐसी क्या पट्टी पढ़ाई जाती है कि एक ऐसे आदमी के लिए ये जान देने पर उतारू हो जाते हैं जिसे अदालत दोषी करार देती है। ऐसा भी नहीं है कि ये पहली बार हो रहा है, इससे पहले आशाराम बापू, रामपाल, रामवृक्ष यादव के लिए ऐसा कोहराम मचा था। रामपाल और रामवृक्ष ने तो प्रशासन से लड़ने के लिए एक तरह से फौज का निर्माण कर लिया था।

गुरमीत के पास भी ऐसी संख्या में लोग मौजूद हैं जिनके सोचने समझने की क्षमता लुप्त हो चुकी है और वो जान देने से भी चूकने वाले नहीं हैं। ये केवल अनपढ़, समाज से कटे हुए लोग नहीं है जिन्हें आसानी से बरगलाया जा सके जबकि पढ़े लिखे, दिमाग से संतुलित लोग भी गुरमीत के साथ खड़े हैं। ये अलग बात है कि इनमें काफी संख्या में भाड़े पर बुलाए गए गुंडे भी शामिल हैं जिनका पेशा ही ऐसे उत्पातों को अंजाम देना है। सिरसा में डेरा के मुख्यालय में एक लाख के आस पास लोग मौजूद हैं। एक पढ़ा लिखा आदमी जिसके पास कानून और अच्छे बुरे को पहचानने की क्षमता है वो भला कैसे इन ढ़ोंगी बाबाओं के चक्कर में पड़ जाता है पता नहीं चलता। आज भी ग्रामीण समाज में तबियत खराब होने पर बाबओं से दिखाने और इलाज कराने की प्रथा मरी नहीं है। कई बार इस झाड़ फूंक में लोगों की जान तक चली जाती है लेकिन इनका विश्वास नहीं डिगता।

कई धार्मिक रूप से आस्थावान लोगों से मैंने इस पर बात की तो उन्होंने कहा कि वो सबमें आस्था रखते हैं लेकिन अगर कुछ कानूनी रूप से गलत है तो उसका विरोध होना चाहिए, धर्म के नाम पर किसी रोड के बीच में मंदिर या मस्जिद बने और प्रशासन उसे रोके तो वो उसके खिलाफ लड़ने नहीं जाएंगे। लेकिन ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम है।
इस आस्था के नाम पर आम जनता को जो परेशानी हो रही है उसके बारे में सोचना किसका काम है, कई दिनों से इंटरनेट, बसें, ट्रेन सब बंद है जो हमारे दैनिक क्रियाकलाप की चीजें हैं। एक व्यक्ति अपने आप में इतना मजबूत है कि सरकार बेबस नजर आ रही है तो किस व्यवस्था में जी रहे हैं हम। आमतौर पर सरकार भी जनता के मौलिक अधिकारों को नहीं छू सकती लेकिन एक व्यक्ति के वजह से लाखों लोगों का मौलिक अधिकार ताक पर रख दिया गया है इसके लिए भी गुरमीत पर एक मुकदमा चलाना चाहिए, साथ ही उनके साथियों पर देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने और देशद्रोह का मुकदमा चलना चाहिए।

शुरूआत में एक तरफ तो यह पूरे सरकार की चूक है जो हाइकोर्ट के आदेश आने तक पता नहीं कहाँ खोई रही कि पता ही नहीं चला कि ऐसे हालात हो सकते हैं, कुछ हरियाणा के कुछ स्थानीय लोगों से बात हुई तो उन्होंने ने बताया कि अजीब सा माहौल हो गया है जैसे कि अपने ही घर में गिरफ्तार हो गए हैं ऐसा लग रहा है। अच्छी बात है कि अब हालात सामान्य हैं इंटरनेट भी बहाल हो गया है लेकिन राज्य सरकार को अभी कुछ दिन सावधान रहने की जरूरत है ताकि ज्यादा असामान्य कुछ नहीं हो और राज्य को होने वाले नुकसान की भरपाई गुरमीत के संपत्ति ले हो। इससे ऐसे बाबाओं का मनोबल भी टूटेगा कि कानून व्यवस्था के उपर कोई नहीं है क्योंकि अपने देश में ऐसे बाबओं की कमी नहीं है और भविष्य में ऐसी घटनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है तो जरूरत है कि अभी से सावधानी बरतें जिससे कि कोई भी राज्य ऐसे बाबाओं के चक्कर में अशांत ना हो।

(अभिषेक)


Sunday 20 August 2017

बाढ़ तो बस झलकी है............
बिहार में बाढ़ से अभी मात्र 253 मौतें ही हुई है, आँकड़ा ज्यादा तो नहीं लग रहा है ना, वैसे भी अगस्त के महीने में मौतें तो होती रहती हैं। सरकार की इसमें क्या गलती है, हमारी तो आदत है हर मामले में सरकार की कमी निकाल कर उसे गरिया देना। अब मुख्यमंत्री हवाई यात्रा कर के डूबते हुए गाँव, खलिहानों को देख तो रहे हैं लेकिन कर क्या सकते हैं अब तैर तैर के लोगों को बचाएंगे क्या?  बाढ़ आपदा के नाम पर लाखों करोड़ों का फंड रीलिज करा सकते हैं, केन्द्र सरकार से मदद मांग सकते हैं वैसे भी प्रधानमंत्री जी उनके अभिन्न मित्र हो चुके हैं तो कोई दिक्कत ही नहीं है वो तो एक कुत्ते की मौत पर भी भावुक होने वाले लोग हैं फिर तो यहाँ 253 जानें हैं।
एनडीआरएफ की टीम जोर शोर से बचाओ कार्य में लगी है, मेरा गाँव डूबा हुआ है मदद के नाम पर गाँव से 5 किलोमीटर दूर एक स्कूल की छत पर 4 एनडीआरएफ के जवान तैनात हैं जो खाना बनाते हैं खाते हैं और केवल शौचालय के लिए नीचे उतरते हैं। अब लोगों को बचाने में अपनी जान थोड़े देंगे।
सड़क वैसे भी जर्जर ही थी, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना से एक बार बनी थी उसके बाद बस टूटती रही, अब कई जगह से और टूट गई जिसे बाढ़ के बाद लोकल जीप गाड़ी वाले भर के जाने लायक बना देंगे। गाँव की छतों पर एक-आध पैकेट भी गिरे थे जिसे राहत सामग्री कहा जाता है।
बिजली की कौन बात करे मोबाइल के टावर भी बंद थे जिससे किसी से संपर्क नहीं हो पा रहा था। वैसे आप सोच रहे होंगे मैं ये सब क्यों बता रहा हूँ दरअसल ये उभरते हुए उन्नत भारत की तस्वीर है जिसे सबको आँख खोल के देखना चाहिए।
वैसे असली विपदा तो बाढ़ के बाद की है जब सैकड़ों बिमारियाँ जन्म लेंगी। वैसे भी बिहार में 28000 की आबादी पर एक डॉक्टर की उपलब्धता है ऐसे में बिमारी का सामना करना कठिन होगा। फसलें डूब के बर्बाद हो चुकी होंगी तो इसका खामियाजा लोगों को अगले साल भुगतना होगा जब उनके खाने पर संकट आएगा। फसल से होने वाली कमाई पर निर्भर रहने वालों का दैनिक जीवन जिस भयंकर रूप से प्रभावित होगा उसका अनुमान लगाना कठिन है।
ऐसे में मुझे गोदान के होरी की याद आ जाती है जो साल दर साल कर्ज के दलदल में ऐसा धंसता चला जाता है कि मौत को बाद भी नहीं उबर पाता। आज भी ऐसे होरियों की कमी नहीं है। दरअसल हम इनकी समस्या बस देख सकते हैं, लिख सकते हैं, बातचीत कर सकते हैं, ना समझ सकते हैं ना झेल सकते हैं।
कुछ लोगों का कहना है कि इसमें सरकार क्या करे, मैं पूछता हूं तो सरकार आखिर है ही क्यों बस लोकतंत्र का पर्व मनाने के लिए?  हर पाँच साल में हम लोकसभा विधानसभा के चुनावों के लिए लाइन लगा के मतदान के लिए खड़े हो जाते हैं तय करते हैं अपना भविष्य कि अब सब बदल जाएगा लेकिन बदलता क्या है ये मेरे लिए एक सवाल ही है, आपके मन में सवाल नहीं उठते क्या या आप सवालों से डरते हैं कि आप पूछेंगे तो आपसे कोई पूछेगा तो डरिए मत सवाल आए तो मुझे भी बताइए...हम साथ पूछेंगे अगली बार................

(अभिषेक)
बाढ़ तो बस झलकी है............
बिहार में बाढ़ से अभी मात्र 253 मौतें ही हुई है, आँकड़ा ज्यादा तो नहीं लग रहा है ना, वैसे भी अगस्त के महीने में मौतें तो होती रहती हैं। सरकार की इसमें क्या गलती है, हमारी तो आदत है हर मामले में सरकार की कमी निकाल कर उसे गरिया देना। अब मुख्यमंत्री हवाई यात्रा कर के डूबते हुए गाँव, खलिहानों को देख तो रहे हैं लेकिन कर क्या सकते हैं अब तैर तैर के लोगों को बचाएंगे क्या?  बाढ़ आपदा के नाम पर लाखों करोड़ों का फंड रीलिज करा सकते हैं, केन्द्र सरकार से मदद मांग सकते हैं वैसे भी प्रधानमंत्री जी उनके अभिन्न मित्र हो चुके हैं तो कोई दिक्कत ही नहीं है वो तो एक कुत्ते की मौत पर भी भावुक होने वाले लोग हैं फिर तो यहाँ 253 जानें हैं।
एनडीआरएफ की टीम जोर शोर से बचाओ कार्य में लगी है, मेरा गाँव डूबा हुआ है मदद के नाम पर गाँव से 5 किलोमीटर दूर एक स्कूल की छत पर 4 एनडीआरएफ के जवान तैनात हैं जो खाना बनाते हैं खाते हैं और केवल शौचालय के लिए नीचे उतरते हैं। अब लोगों को बचाने में अपनी जान थोड़े देंगे।
सड़क वैसे भी जर्जर ही थी, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना से एक बार बनी थी उसके बाद बस टूटती रही, अब कई जगह से और टूट गई जिसे बाढ़ के बाद लोकल जीप गाड़ी वाले भर के जाने लायक बना देंगे। गाँव की छतों पर एक-आध पैकेट भी गिरे थे जिसे राहत सामग्री कहा जाता है।
बिजली की कौन बात करे मोबाइल के टावर भी बंद थे जिससे किसी से संपर्क नहीं हो पा रहा था। वैसे आप सोच रहे होंगे मैं ये सब क्यों बता रहा हूँ दरअसल ये उभरते हुए उन्नत भारत की तस्वीर है जिसे सबको आँख खोल के देखना चाहिए।
वैसे असली विपदा तो बाढ़ के बाद की है जब सैकड़ों बिमारियाँ जन्म लेंगी। वैसे भी बिहार में 28000 की आबादी पर एक डॉक्टर की उपलब्धता है ऐसे में बिमारी का सामना करना कठिन होगा। फसलें डूब के बर्बाद हो चुकी होंगी तो इसका खामियाजा लोगों को अगले साल भुगतना होगा जब उनके खाने पर संकट आएगा। फसल से होने वाली कमाई पर निर्भर रहने वालों का दैनिक जीवन जिस भयंकर रूप से प्रभावित होगा उसका अनुमान लगाना कठिन है।
ऐसे में मुझे गोदान के होरी की याद आ जाती है जो साल दर साल कर्ज के दलदल में ऐसा धंसता चला जाता है कि मौत को बाद भी नहीं उबर पाता। आज भी ऐसे होरियों की कमी नहीं है। दरअसल हम इनकी समस्या बस देख सकते हैं, लिख सकते हैं, बातचीत कर सकते हैं, ना समझ सकते हैं ना झेल सकते हैं।
कुछ लोगों का कहना है कि इसमें सरकार क्या करे, मैं पूछता हूं तो सरकार आखिर है ही क्यों बस लोकतंत्र का पर्व मनाने के लिए?  हर पाँच साल में हम लोकसभा विधानसभा के चुनावों के लिए लाइन लगा के मतदान के लिए खड़े हो जाते हैं तय करते हैं अपना भविष्य कि अब सब बदल जाएगा लेकिन बदलता क्या है ये मेरे लिए एक सवाल ही है, आपके मन में सवाल नहीं उठते क्या या आप सवालों से डरते हैं कि आप पूछेंगे तो आपसे कोई पूछेगा तो डरिए मत सवाल आए तो मुझे भी बताइए...हम साथ पूछेंगे अगली बार................

(अभिषेक)

Thursday 23 March 2017

डर आपके सरकार से नहीं लगता साहब आपके शोहदों के कार्यकाल से लगता है

सरकार बदल चुकी है, प्रचंड बहुमत के साथ नई सरकार सत्तासीन हो चुकी है लोगों के नई सरकार में असीम बहुमत के साथ विश्वास व्यक्त किया है, मुख्यमंत्री पद के शपथ के साथ तमाम चैनलों पर चौबीस गुना सात चलने वाली बहस कौन बनेगा मुख्यमंत्री जैसी पकाऊ बहसें खत्म हो गई है।
संसद मे बतौर सांसद आदित्यनाथ ने अपने भाषण में काफी चुटीले अंदाज में कहा था खड़गे जी उत्तर प्रदेश में अब बहुत कुछ बंद होने वाला है। उनकी इस बात का असर तड़ातड़ लिए जाने वाले फैसलों में साफ दिखने लगा है। मतलब साफ है कि ये चुप बैठने वाली सरकार नहीं है वैसे ये भी कहा जा रहा है कि नई बहु का रंग कुछ दिन अच्छा ही लगता है।
एक तरफ जहाँ सरकार के अच्छे कदमों की सराहना होनी चाहिए वहीं दूसरी तरफ सरकार की आड़ में कानून व्यवस्था को चुनौती देते और गुंडागर्दी करते लोगों के समूहों पर भी कड़ी कार्यवाही की जरूरत है। चुनाव के समय ये समूह एक विशेष पार्टी का समर्थन करते हैं और फिर उसकी सरकार बन जाने पर खुलकर धांधली करते हैं जैसे नई सरकार ने इन्हें कानून व्यवस्था हाथ में लेने का लाइसेंस दिया हो। चूंकि चुनाव में ये दल उस पार्टी के समर्थन में होते हैं जो सत्ता में आती है तो सरकार भी इनपर कार्यवाही करने से बचती है। ये किसी एक पार्टी की कहानी नहीं है, हर पार्टी के साथ ऐसे छुटभैये जुड़े रहते हैं। पिछली सरकार के कार्यकाल में भी आए दिन टोल बूथ पर होती लड़ाईयाँ अभी भूली नहीं हैं।

चुनाव में भाजपा वे अपने घोषणापत्र में कहा था कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए एंटी रोमियो स्कावयड का गठन करेगी जिसे अब अमली जामा पहनाया जा रहा है। क्या इसका मतलब ये है पहले पुलिस महिलाओं के साथ हुए ऐसे वारदात से अच्छे से नहीं निपटती थी?  एंटी रोमियो स्कावयड में शामिल पुलिस अब लड़कों से अजीबों गरीब सवालात कर रही है जिसमें फटे हुए जींस से लेकर टी-शर्ट के उपर शर्ट का बटन खोल कर भी चलने पर सवाल किए जा रहे हैं। सतीश ने बताया कि वो म्यूजिक से जुड़े हुए हैं और स्टाइलिश दाढ़ी रखते हैं, फैशन के लिए कभी कभी शर्ट खोल के बाइक चलाते हैं कल उन्हें रास्ते में रोक कर सवाल किए गए जो अजीब था। ऐसे ही कई शहरों से अपने बहन को कॉलेज से लाने गए लड़कों को भी चेतावनी दी गई तो कहीं उठक-बैठक भी कराया गया। डर है कि ये एंटी रोमियो स्क्वायड कुछ तथाकथित हिन्दू संस्कृति रक्षक दलों की तरह कहीं साथ बैठे कपल से आपस में राखी ना बंधवाने लगे या मारपीट ना करने लगे। यहाँ तक की बनारस के शहीद उद्दान में अकेले बैठे लड़कों को भी बुला कर चेतावनी दी गई।

 बनारस में कल कई शराब की दुकानों को बंद करने को लेकर बवाल काटा गया। आमतौर पर अखबारों में आया कि ये महिलाओं के द्वारा किया गया हंगामा था जिसमें शराब की दुकानों पर तोड़ फोड़ की गई हो सेल्समैन को मारा पीटा गया, शराब की बोतलें फेंक दी गई लेकिन कुछ लोगों से बातचीत करने पर पता चला कि इसमें कुछ युवक भी शामिल थे और कई जगह के डिपार्टमेंटल स्टोर पर दुकानों के अंदर टेबल कुर्सीयाँ तोड़ दी गई और बाकि सब्जियाँ, पनीर जैसे आइटम भी फेंक दिए गए। बाहर पुलिस चुपचाप खड़े तमाशा देख रही थी।

अगर शराब बंद ही करना है तो इसके लिए एक कानूनी प्रावधान लाना होगा ऐसे हंगामें कर और अपनी नौकरी कर रहे कर्मचारी को पिटने के लिए लोगों पर कानूनी कारवाई होना चाहिए। ठीक ऐसा ही बूचड़खानों के साथ भी है विदित हो कि पिछले साल कई जगह पशुओं को लेकर जा रहे ट्रक वालों को कुछ लोगों ने घेर कर मार दिया था।

बात ठीक है जो चीजें गलत हैं वो बंद हो लेकिन ये कानूनी दायरे में ही हो वरना ना गुंडाराज ना भ्रष्टाचार का नारा देने वाली सरकार के राज में ही गुंडाराज को बढ़ावा मिलने लगेगा।

(अभिषेक)