Thursday 20 August 2015

             पर्यावरण ओर समकालीन समस्याएँ

हर बार से अलग इस बार बात पर्यावरण पर कर रहा हूँ जिसके बारे में हम रोज अन्य मुद्दों की तरह बात नहीं करते। हमारे देश में हर वर्ग के बहस का मुद्दा अलग-अलग है, अर्थात मुद्दों में भी वर्ग विभेद स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। जहाँ छोटे बच्चों के बहस का मुद्दा उनका कार्टून सीरियल और वीडियो गेम तक सीमित है वहीं उनसे थोड़े बड़े बच्चे फेसबुक पर अपना स्टेटस अपडेट करने और नए दोस्त बनाने में व्यस्त हैं। जो लोग किशोरावस्था पार कर चुके हैं वो नए बाइक, गैजेट, वीकेंड पर फिल्में देखने, नाइटक्लब जाने और कभी कभी क्रांतीकारी भावना वाली राजनीति की बात करते हैं। इस उम्र के लोग देश के दुर्दशा पर बात करके अपना समय नहीं बर्बाद नहीं करना चाहते। जो एक वर्ग नौकरी में लगा हुआ है वो अपने पारिवारिक बोझ तले इस कदर दबा हुआ है कि किसी तरह के मुद्दे पर बहस का समय हीं नहीं जुटा पाते। जो वृद्द वर्ग है वो अपने स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं और अकेलेपन से जुझ रहे हैं। अगर थोड़ा बहुत समय मिलता भी है तो आजकल के समय को कोसने में निकल जाता है, पर्यावरण का तो जो होना है होगा हीं।
फिर भी आम जन-जीवन में अधिकांश मुद्दों पर कभी ना कभी बहस तो हो हीं जाती है लेकिन पर्यावरण एक ऎसा मुद्दा है जो बिल्कुल अलग-थलग है। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण संतुलन के अथक प्रयास हो रहे हैं परंतु ये तब तक निरर्थक हैं जब तक आम लोगों को इससे जोड़ा ना जाए और सार्वजनिक रूप से इसके फायदे-नुकसान के बारे में लोगों से चर्चा ना की जाए।
हम अपने चारों तरफ एक कृत्रिम पर्यावरण बनाने में जुटे हुए हैं। हमारे पास हर मौसम से लड़ने का हथियार है(आर्थिक रूप से संपन्न वर्ग के लिए), मौसम चाहे कितना भी प्रतिकूल हो हम अपने अनुसार उसे बदल सकते हैं। जहाँ ठंढ़ से बचने के लिए हमारे पास हीटर, ब्लोअर तो वहीं गर्मी से बचने के लिए कूलर, ए.सी. जैसे तमाम इंतजाम मौजूद हैं जिसका इस्तेमाल हम जम के करते हैं बिना इस बात की परवाह किए कि ये साधन हमारे पर्यावरण को कितना नुकसान पहुँचा रहे हैं।
आजकल सामान्य आय वर्ग के लोगों का भी घर में ए.सी. लगवा लेना सामान्य बात है। यह घर को तो जरूरत के मुताबिक ठंढ़ा कर देता है पर कभी आप ए.सी. के बैकसाइड खड़े होकर अनुभव कीजिएगा कि कितनी गर्म हवा इससे निकलती है। ये हवाएं वातावरण को गर्म करने के लिए काफी हैं। ये सामान्य अनुभव की बात है, जरूरी नहीं कि इसकी जानकारी किताबों में सी.एफ.सी. के उत्सर्जन और ओजोनमंडल के क्षरण के बारे में हीं पढ़ कर मिले।
ए.सी. में हमेशा रहने वाले बच्चे तापमान थोड़ा भी अधिक होने पर असहज हो जाते हैं, उन्हें कई तरह के रिएक्शन होने लगते हैं जो शरीर के प्रतिरोधक क्षमता कम होने का प्रतीक है। इसके अलावा नई जगह, ऩए माहौल को लेकर हमारा शरीर जल्दी अभ्य़स्त नहीं हो पाता और बिमारीय़ाँ हावी हो जाती हैं।
गाँव में बुजुर्गों के मुँह से मैंने हमेशा सुना है, जैसे हीं गर्मी बढ़ती है वो कहते हैं आज तो बड़ी उमस है लगता है बारिश होगी और शाम तक बारिश हो भी जाती थी लेकिन आजकल हफ्तों उच्च तापमान और उमस बनी रहती है लेकिन बारिश का नामोनिशान नहीं मिलता। भूगोल में मैंने पढ़ा है कि कुछ वर्षा स्थानीय प्रभाव के कारण भी होती है जिसमें तापमान उच्च रहने पर वाष्पीकरण की दर तेज होती है और वायुमंडल में संघनन के फलस्वरूप वर्षा होती है। लेकिन इसके लिए स्थानीय़ स्तर पर झील, तालाब का होना आवश्यक है जो कि हमारे पास दिन प्रतिदिन कम होते जा रहे हैं तो वर्षा कहाँ से हो। सारे झील, तालाब भरकर हमने अपने जरूरत के मुताबिक खेत, घर बनाएँ हैं और अपने स्वार्थ की पूर्ति की है।
पर्यावरण एक ऎसी संरचना है जिसके साथ किए गए छेड़खानी का प्रभाव तुरंत स्पष्ट नहीं होता है, यह आने वाले वर्षों में परिलक्षित होता है। विश्व स्तर पर किए गए शोध से यह स्पष्ट है कि धरती का तापमान बढ़ रहा है जिससे आने वाले दिनों में ग्लेशियर के बर्फ पिघल जाएंगे, समुद्र का जलस्तर बढ़ जाएगा और कई टापू और देश डूब जाएंगे।
जरूरत है हर स्तर पर लोगों को इस खतरे से सावधान किया जाए और पर्यावरण के प्रति एक नरम दृष्टिकोण बनाने की प्रेरणा दी जाए। स्कूल स्तर पर पर्यावरण अध्ययन को अनिवार्य बनाया जाए। संतुलित और धारणीय विकास पर बल दिया जाए ताकि हम भविष्य के लिए इसे सुरक्षित रख सकें।
                                                             

      (अभिषेक कुमार)