Sunday 3 September 2017

बाबाओं का टूटता तिलिस्म
गुरमीत राम रहीम के फैसले के बाद हरियाणा, पंजाब,  थोड़ा दिल्ली और उत्तर प्रदेश में उनके भक्त भावुक होकर उत्पात मचा रहे थे बाबा का ट्वीट उन्हें जितना ही शांत रहने के लिए कहता वो उतने ही आक्रामक और उग्र होकर प्रदर्शन कर रहे थे। इन प्रदर्शनकारियों में महिलाएं, युवा, बुजूर्ग हर तरह के भक्त हैं, वैसे भक्त कहना इन्हें शायद भक्त जैसे शब्द का अपमान करना ही है। ये अलग बात है कि गुरमीत को सजा होने के बाद ज्यादा उत्पाद नहीं हुआ क्योंकि उसके पहले के हालात पर सरकार अपनी किरकिरी करवा चुकी थी।

असल बात ये है कि ऐसे लोग आते कहाँ से हैं और इन्हें ऐसी क्या पट्टी पढ़ाई जाती है कि एक ऐसे आदमी के लिए ये जान देने पर उतारू हो जाते हैं जिसे अदालत दोषी करार देती है। ऐसा भी नहीं है कि ये पहली बार हो रहा है, इससे पहले आशाराम बापू, रामपाल, रामवृक्ष यादव के लिए ऐसा कोहराम मचा था। रामपाल और रामवृक्ष ने तो प्रशासन से लड़ने के लिए एक तरह से फौज का निर्माण कर लिया था।

गुरमीत के पास भी ऐसी संख्या में लोग मौजूद हैं जिनके सोचने समझने की क्षमता लुप्त हो चुकी है और वो जान देने से भी चूकने वाले नहीं हैं। ये केवल अनपढ़, समाज से कटे हुए लोग नहीं है जिन्हें आसानी से बरगलाया जा सके जबकि पढ़े लिखे, दिमाग से संतुलित लोग भी गुरमीत के साथ खड़े हैं। ये अलग बात है कि इनमें काफी संख्या में भाड़े पर बुलाए गए गुंडे भी शामिल हैं जिनका पेशा ही ऐसे उत्पातों को अंजाम देना है। सिरसा में डेरा के मुख्यालय में एक लाख के आस पास लोग मौजूद हैं। एक पढ़ा लिखा आदमी जिसके पास कानून और अच्छे बुरे को पहचानने की क्षमता है वो भला कैसे इन ढ़ोंगी बाबाओं के चक्कर में पड़ जाता है पता नहीं चलता। आज भी ग्रामीण समाज में तबियत खराब होने पर बाबओं से दिखाने और इलाज कराने की प्रथा मरी नहीं है। कई बार इस झाड़ फूंक में लोगों की जान तक चली जाती है लेकिन इनका विश्वास नहीं डिगता।

कई धार्मिक रूप से आस्थावान लोगों से मैंने इस पर बात की तो उन्होंने कहा कि वो सबमें आस्था रखते हैं लेकिन अगर कुछ कानूनी रूप से गलत है तो उसका विरोध होना चाहिए, धर्म के नाम पर किसी रोड के बीच में मंदिर या मस्जिद बने और प्रशासन उसे रोके तो वो उसके खिलाफ लड़ने नहीं जाएंगे। लेकिन ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम है।
इस आस्था के नाम पर आम जनता को जो परेशानी हो रही है उसके बारे में सोचना किसका काम है, कई दिनों से इंटरनेट, बसें, ट्रेन सब बंद है जो हमारे दैनिक क्रियाकलाप की चीजें हैं। एक व्यक्ति अपने आप में इतना मजबूत है कि सरकार बेबस नजर आ रही है तो किस व्यवस्था में जी रहे हैं हम। आमतौर पर सरकार भी जनता के मौलिक अधिकारों को नहीं छू सकती लेकिन एक व्यक्ति के वजह से लाखों लोगों का मौलिक अधिकार ताक पर रख दिया गया है इसके लिए भी गुरमीत पर एक मुकदमा चलाना चाहिए, साथ ही उनके साथियों पर देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने और देशद्रोह का मुकदमा चलना चाहिए।

शुरूआत में एक तरफ तो यह पूरे सरकार की चूक है जो हाइकोर्ट के आदेश आने तक पता नहीं कहाँ खोई रही कि पता ही नहीं चला कि ऐसे हालात हो सकते हैं, कुछ हरियाणा के कुछ स्थानीय लोगों से बात हुई तो उन्होंने ने बताया कि अजीब सा माहौल हो गया है जैसे कि अपने ही घर में गिरफ्तार हो गए हैं ऐसा लग रहा है। अच्छी बात है कि अब हालात सामान्य हैं इंटरनेट भी बहाल हो गया है लेकिन राज्य सरकार को अभी कुछ दिन सावधान रहने की जरूरत है ताकि ज्यादा असामान्य कुछ नहीं हो और राज्य को होने वाले नुकसान की भरपाई गुरमीत के संपत्ति ले हो। इससे ऐसे बाबाओं का मनोबल भी टूटेगा कि कानून व्यवस्था के उपर कोई नहीं है क्योंकि अपने देश में ऐसे बाबओं की कमी नहीं है और भविष्य में ऐसी घटनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है तो जरूरत है कि अभी से सावधानी बरतें जिससे कि कोई भी राज्य ऐसे बाबाओं के चक्कर में अशांत ना हो।

(अभिषेक)