निर्भया तुम नहीं हो लेकिन
तुम्हारी चीखें अभी भी हैं....
16 दिसंबर 2012 आज
चार साल हो गए, मैं दिल्ली में हीं था उस समय जब इंसानियत को अंदर तक तोड़ देने
वाली और मनुष्यता को पशुता में बदल देने वाले उस भयावह घटना को अंजाम दिया गया था।
युवाओं मे इस घटना
को लेकर बेहद आक्रोश था, जंतर –मंतर पर धरने दिए जा रहे थे, महिला-उत्पीड़न के
खिलाफ कानून बदलने और ऐसे हैवानों को फाँसी देने की बात की जा रही थी। ऐसा लग रहा
था जैसे ये लडकों से अभद्रता समाप्त होने का काल है, इसके बाद ना लड़कियों से छेड़खानी
की घटना सामने आएगी, ना बलात्कार होंगे, ना कोई लड़की जलाई जाएगी, ना उन पर कोई
कमेंट हुआ करेगा, ना कहीं दहेज के नाम पर उन्हें जलाया जाएगा और ना ही कोई
दुर्वयवहार होगा।
लेकिन 4 साल बीत गए
और बदलाव के नाम पर हुआ क्या है, हाल में ही ऑटो से लौटते समय एक लड़की से हुई
अभद्रता को मैंने फेसबुक पर शेयर किया उसके बाद मुझे पता चला कि वो तो बहुत छोटी
बात थी। फेसबुक पर मेरे पोस्ट को पढ़ने के बाद कुछ लड़कियों ने बताया मुझे कि इससे
कही ज्यादा बड़ी बात रोज हमारे आस पास हो रही हैं यहाँ तक की हर लड़की को अपने
जीवन में ऐसे हादसों से गुजरना पड़ता है। एक लड़की की दास्तान शेयर कर रहा हूँ
जिसे सुन के सोचने पर मजबूर होना पड़ता है कि हम कितना बदले हैं.........
मैं 6ठी क्लास में
थी जब घर पर मुझे पढ़ाने के लिए ट्यूटर ढूंढ़ा जा रहा था, चूंकि मेरे पापा मुझे
बहुत प्यार करते थे इसलिए हमेशा मेरा ख्याल रखते थे इसलिए नहीं चाहते थे कि मैं
बाहर पढ़ने जाऊँ। मुझे पढ़ाने के लिए उन्होने अपने एक दोस्त के बेटे को बोल दिया
था, कि वो घर का ही लड़का है ग्रेजुएशन कर रहा है, पढ़ने में तेज है तो अच्छे से
पढ़ा भी लेगा और कुछ पॉकेटमनी भी उसे मिल जाएगी।
शुरू शुरू में वो
बहुत अच्छे थे, मुझे मानते भी बहुत थे, पढ़ाते भी अच्छा थे, मेरे लिए चॉकलेट्स भी
लाते थे, सबकुछ अच्छा चल रहा था फिर कि मुझे महसूस हुआ कि उन्होने अपने पढ़ाने की
जगह बदल दी थी, पहले जो वो सामने बैठ के पढ़ाते थे वो अब बगल
में बैठ के पढ़ाने लगे थे और कॉपी किताब लेने देने के बहाने मुझे छूने भी लगे थे।
मुझे आज ये एहसास हो रहा है जबकि उस समय मुझे पता भी नहीं चल रहा था कि मेरे साथ
क्या हो रहा है।
एक दिन मम्मी बाहर
गई हुई थी, पापा स्कूल से लौटे नहीं थे, भैया भी ट्यूशन पढने गया था। भैया मुझे
पढ़ाने आए (हाँ, मैं उन्हें भैया ही कहती थी) पूछा कि कहाँ हैं सबलोग ? मैंने बताया सबके बारे में, फिर उन्होंने पानी माँगा, मैं किचेन से जा के पानी
ले के आई, उन्होंने पानी का ग्लास ले के टेबल पर रख दिया और मुझे पकड़ लिया और बेड
पर लेकर चढ़ गए। तब मुझे समझ ही नहीं आया ये अचानक क्या हो रहा है लेकिन जो भी हो
रहा था वो मुझे बहुत बुरा लग रहा था। मैं रोने लगी और थोड़ी देर में चिल्लाने लगी,
जब उन्हें लगा कि मेरी आवाज घर के बाहर जा रही होगी तो उन्होंने मुझे छोड़ा और मुझे समझाने लगे कि
किसी से बताना मत वरना लोग मुझे जान से मार डालेंगे, मैं तो बस खेल रहा था, मैं
रोज तुम्हारे लिए चॉकलेट लाया करूँगा, तुम किसी से कुछ मत कहना।
मैं धीरे-धीरे चुप
हो गई डर भी लग रहा था कि सच में भैया को कोई मार ना डाले, फिर मुझे चुप करा कर
भैया चले गए, मैंने भी ये बात किसी को नहीं बताई, भैया आते थे मेरे से नजर नहीं
मिला पाते थे, मुझे भी अब उनसे डर लगने लगता रहता था औऱ पढ़ने में भी मन नहीं लगता
था।
कुछ दिनों के बाद
मैंने ये बात अपने बड़े भाई को बताई वो भी तब छोटा ही था फिर भी उसने समझा औऱ पापा से बात कर के कहा कि
इसे अब मैं ही पढ़ाऊँगा टाइम निकाल के आप भैया को आने से मना कर दीजिए।
इस घटना ने जैसे
मेरे जीवन से प्रतिरोध की क्षमता ही छीन ली, स्कूल-कॉलेज में लड़के कमेंट कर के
चले जाते थे और मैं चुप ही रह जाती थी, अब भी चुप रहती हूँ पर आपका पोस्ट पढ़ा तो
लगा कि आपको बताऊँ जब इतनी छोटी घटना से प्रभावित
हैं तो सोचिए लड़कियाँ अपने जीवन में रोज होने वाले घटनाओं से कितना
प्रभावित होंगी, और तो और वही आदमी अब किसी बड़ी कंपनी में काम कर रहा है,जब सामने
आता है तो मन घृणा से भर जाता है लेकिन कुछ नहीं कर पाती। निर्भया आंदोलन ने ही
क्या बदल दिया हर जगह रोज जाने कितनी निर्भया को मानसिक प्रताड़ना से गुजरना पड़ता
है ये कमेंट करने वाले नहीं समझेंगे और क्या कहूँ
समझिए अब तो आदत ही हो गई है तो आप भी इतना मत सोचिए।
मैं खामोश था पलकों
के कोरों पर आँसू थे, लग रहा था कि मैं भी इसी समाज का हिस्सा हूँ औऱ इन सब घटनाओं
के लिए मैं भी समान रूप से जिम्मेदार हूँ तो बस तुमसे यही कहना चाहता हूँ निर्भया
तुम नहीं हो लेकिन तुम्हारी चीखें अब भी कानों में गूंज रही है, सवाल कर रही हैं
कि मेरे बाद क्या बदला मेरे पास उसके सवालों के जवाब में बस आँसू हैं, क्या करूँ
सॉरी भी तो नहीं बोल सकता क्योंकि कोई सॉरी बोलना भी तुम्हारे साथ धोखा करना है क्योंकि सिर्फ सॉरी
बोलने से का मतलब कुछ बदलना नहीं होता।
रोज ऐसी घटनाएं
हमारे आस-पास हो रही हैं और रोज जाने कितनी निर्भया का शिकार हो रहा है लेकिन बदलाव
के नाम पर नील बटे सन्नाटा है, तुम तो सब देख रही होगी तुम्हें क्या बताना बस
खामोशी से देखते रहो और कोसते रहो इस समाज को।
(अभिषेक)