सांस्कृतिक महोत्सव के समापन के साथ हीं पर्यावरण की
चिंता भी समाप्त
जिम्मेदारियों से मुँह मोड़ने की हमारी आदत नई नहीं है,
और श्री श्री रविशंकर और उनके विश्व सांस्कृतिक महोत्सव के समापन के साथ यमुना के
खादर में फैले हुए कचरे को देखकर लगता है इसी इतिहास को दोहराया जा रहा है।
महोत्सव से पहले इसकी जगह को लेकर काफी विवाद भी हुआ।
डीडीए द्वारा यमुना के खादर में इतने बड़े आयोजन की अनुमति देने पर एनजीटी ने
डीडीए को काफी फटकारा भी साथ हीं साथ आयोजन से होने वाली क्षति की भरपाई के लिए
श्री श्री रविशंकर के आर्ट ऑफ लिविंग पर 5 करोड़ का जुर्माना भी लगाया।
इसके अलावा आर्ट ऑफ
लिविंग की ओर से आयोजित निजी कार्यक्रम में सेना का इस्तेमाल कहां तक जायज है इसको
लेकर भी काफी विवाद हुआ और सेना ने रक्षा मंत्रालय का आदेश कह कर अपनी सफाई भी दी।
आयोजन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी शामिल हुए लेकिन इसके आयोजन में न तो
सीधे तौर दिल्ली और न ही केन्द्र सरकार शामिल है।
असम राइफल्स के पूर्व डीजी
लेफ्टिनेंट जनरल रामेश्वर राय कहते हैं कि बेशक यह रक्षा मंत्रालय के कहने पर हो
रहा है लेकिन यह सरासर गलत है। आम आदमी के पैसों के राष्ट्रीय संसाधन का दुरुपयोग
हो रहा है। यह कोई राष्ट्रीय पर्व नहीं है जिसके लिए सेना की गरिमा को दांव पर
लगाया जाए।
अब जब 13 मार्च को पूरे धूमधाम के साथ विश्व सांस्कृतिक महोत्सव समाप्त
चुका है, देश-विदेश से आए मेहमान, मंत्री, सेना सब महोत्सव में शामिल होकर लौट चुके हैं, एक चीज है, जो नहीं लौटी वह है
इस महोत्सव के साथ गांव में आई गंदगी और खेती का नुकसान। यमुना के किनारे बसे
गांवों के किसानों ने एक बार फिर अपने खेतों में काम करना शुरू कर दिया है, लेकिन, अब कुछ दिनों तक
इन्हें खेत में पड़े मल-मूत्र, पानी की बोतलों, पॉलिथीन और थर्मोकोल के ग्लासों को चुनना होगा, क्योंकि सांस्कृतिक
महोत्सव के नाम पर खड़ी फसलों को बुलडोजर से कुचल दिया गया, फिर कूड़े से खेत
पाट दिए गए।
पहले श्री श्री ने कहा कि महोत्सव के
बाद उनके कार्यकर्ता स्थल की सफाई स्वयं करेंगे लेकिन अब पता चला है कि महोत्सव स्थल की सफाई का ठेका एक कंपनी
बीवीजी इंडिया लिमिडेट को दिया गया है। कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी ओम प्रकाश कहते
हैं कि उनकी कंपनी को महोत्सव स्थल की सफाई करने के लिए अधिकृत किया गया है और
उनकी जिम्मेदारी केवल आयोजन स्थल को साफ करने की है ना कि पूरे क्षेत्र को।
हालात अब ऐसे हैं कि हर खेत में पन्नी
ही पन्नी है, बोतल ही बोतल है। स्थानिय मजदूर हाथों से मल-मूत्र साफ कर रहे हैं। पुलिस
इस मामले से कन्नी काट रही है कि उनकी जिम्मेदारी नहीं है कि वो आने वालों पर दबाव
बनाएं कि वो सफाई के लिए रूके। सफाई करने वाले स्थानिय मजदूर हैं जिन्होंने भाड़े
पर खेती के लिए जमीन लिया है और सफाई करना उनकी मजबूरी हो गई है। किसानों को 4000 प्रति एकड़ की दर
से मुआवजा मिला था लेकिन महोत्सव के दौरान गाड़ियों और लोगों के भीड़ के कारण जमीन
पूरी तरह दब गई है जिसे खेती लायक बनाने के लिए कई बार जुताई करनी पड़ेगी जिसका
खर्चा मुआवजे से कहीं अधिक आएगा। किसान अपनी मजबूरी के कारण पहले कुछ बोल नहीं पाए
क्योंकि उनको पता था कि विरोध करने से जो भी मुआवजा मिलने वाला था वो भी नहीं
मिलता और एक बार जब महोत्सव खत्म हो गया तो अब उनकी सुनेगा कौन।
भारत की सभ्यता, संस्कृति का हवाला
देकर और इस समारोह को देश की प्रतिष्ठा से जोड़कर महोत्सव का आयोजन तो करा लिया
गया। प्रधानमंत्री से लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री और देश-विदेश के कई गणमान्य
लोगों ने इसमें अपनी उपस्थिति दर्ज कराई लेकिन जिस पर्यावरण और यमुना की चिंता को
देखते हुए एक समय लग रहा था कि आयोजन रद्द हो जाएगा अब उसी पर्यावरण की सुधि लेने
वाला कोई नहीं है। एक तरफ जहाँ गंगा को बचाने के लिए एक अलग मंत्रालय का गठन किया
गया है और करोड़ों रूपये बहाए जा रहे हैं श्री श्री के महोत्सव वहीं यमुना के खादर
में फैला हुआ कचरा इसका दर्द बयान कर रहा है जिसकी जिम्मेदारी लेने वाला कोई नहीं।
(अभिषेक)
bahutv achha likha h..
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