एक बच्ची के साथ ऐसा कोई कैसे कर सकता
है..........
रात को दो बजे लाइट बंद करने के बाद सोने के लिए
जैसे ही बिस्तर पर सोने के लिए आया देखा मोबाइल पर एक दोस्त का कॉल आ रहा था,
चूंकि रात के दो बज रहे थे इसलिए थोड़ी चिंता का हो जाना स्वभाविक ही था, मैंने
कॉल उठाया तो उधर सिसकती सी आवाज के साथ एक सवाल आया कि 8 साल की बच्ची के साथ ऐसा
कोई कैसे कर सकता है, वो तो बता भी नहीं
सकती कि उसके साथ क्या हुआ, उसे कितना दर्द हुआ होगा, वो रो रही थी और लगातार यही
बात दुहरा रही थी।
मैं खामोश चुपचाप उसे सुन रहा था, समझ नहीं आ रहा
था उसके इस सवाल का क्या जवाब दूँ कि ऐसा कोई कैसे कर सकता है वो भी 8 साल की
बच्ची के साथ, मैं क्या बोलता ऐसा क्यों हुआ, मैं कुछ भी जवाब देने की स्थिति में
नहीं था, वही रटारटाया सा जवाब था मेरे पास हम दरिंदे हो गए हैं क्या करें।
वो रोती रही और रोते-रोते उसने बताया कि मुझे डर
लग रहा है कि उसकी भतीजियों के साथ भी ऐसा कुछ ना हो, वो दोनों भी बच्ची हैं रोज़
दोनों स्कूल जाती हैं, कही कुछ हो गया तो। मेरे साथ तो घर में ही ऐसा हुआ जब मैं
बहुत छोटी थी, मैं किसी को नहीं बता पाई, आज मुझे सब याद आ रहा है कि मेरे साथ
क्या हुआ था, मुझे डर लग रहा है कि उनके साथ कुछ ऐसा हुआ तो, किसी ने उन्हें
जबरदस्ती छुआ तो क्या वो भी किसी को नहीं बताएंगी जैसे मैंने किसी को नहीं बताया।
हमारी गलती क्या है? क्या लड़की होना हमारी गलती है? मेरे पास उसके
सवालों का कोई जवाब नहीं था, मैं उसको क्या दिलासा देता क्या समझता कि चिंता नहीं
करो कल से ऐसा कुछ नहीं होगा, कल से अखबार के किसी पन्ने पर किसी बलात्कार की खबर नहीं
छपेगी, कल से कोई किसी लड़की को अनैतिक रुप से नहीं छुएगा, कल से किसी घर में खुल
के बेटियां बता सकेंगी कि हां उसके साथ कुछ गलत हुआ है।
वो इतनी देर तक रोती रही कि मैं झल्ला गया और उसे
चुप कराने के बजाए उस पर चिल्ला बैठा लेकिन ये चिल्लाहट उस पर नहीं खुद पर थी, अपनी
बेबसी पर थी कि हर रोज़ की तरह सुबह अखबार के पन्ने पलटते हुए ऐसी कई खबरें दिख
जाएंगी, फिर अखबार बंद होने के साथ ये खबरें भी दिमाग के किसी कोने में दब जाएंगी।
निर्भया से लेकर आसिफा तक यही हो रहा है आगे भी होते रहेंगे, कई कैंडल मार्च निकालने बाकी हैं तैयार
रहिए हम ऐसे ही हैं।