Friday 20 April 2018


एक बच्ची के साथ ऐसा कोई कैसे कर सकता है..........


रात को दो बजे लाइट बंद करने के बाद सोने के लिए जैसे ही बिस्तर पर सोने के लिए आया देखा मोबाइल पर एक दोस्त का कॉल आ रहा था, चूंकि रात के दो बज रहे थे इसलिए थोड़ी चिंता का हो जाना स्वभाविक ही था, मैंने कॉल उठाया तो उधर सिसकती सी आवाज के साथ एक सवाल आया कि 8 साल की बच्ची के साथ ऐसा कोई  कैसे कर सकता है, वो तो बता भी नहीं सकती कि उसके साथ क्या हुआ, उसे कितना दर्द हुआ होगा, वो रो रही थी और लगातार यही बात दुहरा रही थी।

मैं खामोश चुपचाप उसे सुन रहा था, समझ नहीं आ रहा था उसके इस सवाल का क्या जवाब दूँ कि ऐसा कोई कैसे कर सकता है वो भी 8 साल की बच्ची के साथ, मैं क्या बोलता ऐसा क्यों हुआ, मैं कुछ भी जवाब देने की स्थिति में नहीं था, वही रटारटाया सा जवाब था मेरे पास हम दरिंदे हो गए हैं क्या करें।

वो रोती रही और रोते-रोते उसने बताया कि मुझे डर लग रहा है कि उसकी भतीजियों के साथ भी ऐसा कुछ ना हो, वो दोनों भी बच्ची हैं रोज़ दोनों स्कूल जाती हैं, कही कुछ हो गया तो। मेरे साथ तो घर में ही ऐसा हुआ जब मैं बहुत छोटी थी, मैं किसी को नहीं बता पाई, आज मुझे सब याद आ रहा है कि मेरे साथ क्या हुआ था, मुझे डर लग रहा है कि उनके साथ कुछ ऐसा हुआ तो, किसी ने उन्हें जबरदस्ती छुआ तो क्या वो भी किसी को नहीं बताएंगी जैसे मैंने किसी को नहीं बताया।

हमारी गलती क्या है? क्या लड़की होना हमारी गलती है? मेरे पास उसके सवालों का कोई जवाब नहीं था, मैं उसको क्या दिलासा देता क्या समझता कि चिंता नहीं करो कल से ऐसा कुछ नहीं होगा, कल से अखबार के किसी पन्ने पर किसी बलात्कार की खबर नहीं छपेगी, कल से कोई किसी लड़की को अनैतिक रुप से नहीं छुएगा, कल से किसी घर में खुल के बेटियां बता सकेंगी कि हां उसके साथ कुछ गलत हुआ है।

वो इतनी देर तक रोती रही कि मैं झल्ला गया और उसे चुप कराने के बजाए उस पर चिल्ला बैठा लेकिन ये चिल्लाहट उस पर नहीं खुद पर थी, अपनी बेबसी पर थी कि हर रोज़ की तरह सुबह अखबार के पन्ने पलटते हुए ऐसी कई खबरें दिख जाएंगी, फिर अखबार बंद होने के साथ ये खबरें भी दिमाग के किसी कोने में दब जाएंगी। निर्भया से लेकर आसिफा तक यही हो रहा है आगे भी होते रहेंगे, कई कैंडल मार्च निकालने बाकी हैं तैयार रहिए हम ऐसे ही हैं।

Saturday 14 April 2018




हम गिरे हुए लोग हैं हमारा कोई ईमान धर्म नहीं.



जी हाँ ये बात ये बात मैं पूरे होशोहवास में कर रहा हूँ। हम डिजर्व ही नहीं करते किसी भी धर्म को पूजना क्योंकि मैंने तो बचपन से यही सुना है और पढ़ा है कि मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना लेकिन हम वही कर रहे हैं, भले खुद कर रहे हों या किसी के इन्फ्लुएंस में आ के लेकिन यही सच है वरना दुनिया का कौन सा ऐसा धर्म है जो बलात्कार को जायज मानता हो या धर्म की आड़ में किसी बलात्कारी को सपोर्ट करता हो।

मैंने जब पढ़ा कि आसिफा के कातिलों को बचाने के लिए वकीलों ने ऐसा हंगामा किया किया कि पुलिस को चार्जशीट दायर करने में 6 घंटे लग गए तो मुझे ये लगा कि हम किस युग में जी रहे हैं? हम क्या कर रहे हैं? क्या सारे सवाल सरकार से होंगे, सिस्टम से होंगे, क्या आपकी औकात है कि आप खुद से सवाल कर सकें कि हम क्या कर रहे हैं।
मैं पूरे होशोहवास में ये बात कर रहा हूँ धर्म के नाम पर हंगामा करने वालों से कि मैं धर्म की कोई ठोस परिभाषा पूछूं कि धर्म क्या है तो कोई बता पाएगा। ये महज संयोग की बात है कि मैं हिन्दू ब्राह्मण परिवार में जन्मा। मैं दलित हो सकता था, मैं मुसलमान हो सकता था, मैं ईसाई, यहूदी, जैन, बौद्ध कुछ भी हो सकता था लेकिन क्या वो मेरा चुनाव होता?  ऐसा होता तो सब समाज के सबसे उपरी पायदान में जन्म लेना चाहते। क्या अभी जो मैं स्वतंत्र रूप से लिख रहा हूँ यही दलित होने पर लिख सकताक्या आत्मविश्वास को भी जाति,धर्म का मोहताज होना चाहिए?

क्या हिन्दू के साथ हुआ बलात्कार मुसलमान के साथ हुए बलात्कार से अलग होता है, क्या किसी मुसलमान की चीखें हिन्दू लड़की की चीखों से कम है, क्या इन चीखों को धर्म के आधार पर विभाजित किया जा सकता है?
हम क्या कर रहे हैं हम क्यों कर रहे हैं कभी पूछा है खुद से अगर आसिफा आपकी बेटी होती (भगवान ना करे ऐसा हो) तो आप ऐसा ही करते।

ये कैंडल मार्च, ये सोशल मीडिया पर जस्टिस फॉर आसिफा चला के कुछ हासिल नहीं होगा। लड़ना है तो अपने परिवार से लड़िए अगर वो हिन्दू मुसलमान में फर्क करता हो, लड़िए अगर वो बेटे के मुकाबले बेटी को कम आजादी देता हो, लड़िए अगर वो किसी और जाति के चाय पीने के लिए अलग ग्लास और खाने के लिए अलग थाली रखता हो।

इतनी जल्दी कुछ नहीं बदलेगा क्योंकि हम भी धारा के साथ उसी में शामिल हो जाते हैं और वही मानते हैं जो हमारा परिवार हमारा समाज आज तक मानते आया है लेकिन अब आपको तय करना है कि आप क्या चाहते हैं।
नारी का अपमान तो महाभारत काल से होता आया है लेकिन वहां भी कोई कृष्ण था लेकिन अब ये आपको तय करना है कि मौका मिलने पर आप दुशासन बनेंगे या कृष्ण?