Tuesday 26 December 2017

लड़का-लड़की एक दूसरे को जानते थे..........

अक्सर किसी छेड़खानी, लड़की पर तेजाब फेंका जाना, सरे-राह कमेंटबाजी या ऐसा कोई मामला जिसमें लड़के द्वारा लड़की को शारीरिक या मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा हो और पुलिस में शिकायत की जाए तो पहला सवाल यही होता है क्या लड़का-लड़की एक-दूसरे को जानते थे, चलो मान लेते हैं ये पूछना जरूरी है लेकिन अगर लड़का-लड़की एक-दूसरे को जानते थे तो क्या लड़के को ऐसा कुछ भी करने का अधिकार मिल जाता है? क्या पुलिस के लिए बस इतना काफी होता है कि बस लड़का-लड़की एक दूसरे को जानते थे इसलिए मामले की जाँच-पड़ताल नहीं की जाए, उस लड़के को नहीं पकड़ा जाए, उसे सजा ना दी जाए, जमानत पर छोड़ दिया जाए ताकि वो उस लड़की को फिर से टॉर्चर कर सके।
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अभी एक खबर पढ़ी कि लड़के ने लड़की को तीन गोलियां मारी, लड़की पीएमसीएच में भर्ती है और पुलिस का बयान है कि लड़का-लड़की एक दूसरे को जानते थे और लड़की के होश में आने के बाद पूछताछ कर आगे की कारवाई की जाएगी। लड़की इंटर की छात्रा है लड़का उस पर शादी करने के लिए दबाव बना रहा था, इससे पहले भी लड़का, लड़की के घर के घर पर गोली चला चुका था। उसने लड़की को धमकी दी थी कि अगर वो मिलने नहीं आएगी तो उसके माँ औऱ भाई को गोली मार देगा। इस वजह से लड़की को बाहर उससे मिलने आना पड़ा और शराब के नशे में धुत लड़के ने उसे गोली मार दी।

मुख्यमंत्री महोदय मुझे नहीं लगता आपके द्वारा चलाए जा रहे किसी भी योजना का कोई फायदा हो रहा है शराबबंदी है लेकिन शराब में धुत लड़के ने उसे सरे-आम गोली मार दी, बाल-विवाह रोकने की आप बात करते हैं लेकिन जो लड़कियां बाल से अब व्यस्क हो चुकी हैं उनके सुरक्षा की कोई जिम्मेदारी आपकी और प्रशासन की है की नहीं और इसमें भी ये बात तो आपके राजधानी पटना की है तो अन्य जगहों पर हालात क्या होंगे इसका अनुमान लगाना इतना मुश्किल नहीं है।
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अब बात लड़कों के मानसिकता की, वो पता नहीं किस दुनिया में जी रहे हैं, ये समझना क्या इतना मुश्किल है लड़की आपकी जागीर नहीं है कि आपकी तरह उसे भी अपने लिए कुछ भी चुनने की स्वतंत्रता संविधान और कानून ने दी है। आप जब रिलेशनशीप में रहते हो और कोई और नई लड़की आपको मिल जाती है तो आप ब्रेकअप कर के आगे बढ़ जाते हो, लड़की भी थोड़-बहुत रो- गाकर चुप हो जाती है लेकिन कोई लड़की जब आपको छोड़ के आगे बढ़ना चाहती है आपका इगो हर्ट हो जाता है, और आप हर हाल में उसे सबक सिखाना चाहते हो, बदला लेना चाहते हो।  क्या आपका इगो किसी लड़की के जान से भी बढ़ कर है कि उसे सबक सिखाने के लिए आप किसी भी हद तक जाने से नहीं चूकते और फिर कहते हैं कि ये प्यार है।

ऐसा नहीं है कि लड़कियाँ भी सब ठीक ही हैं लेकिन बदला लेने के लिए किसी भी हद तक गिरने वाली बात कम से कम उनके अंदर उतनी नहीं है। अक्सर पुलिस,प्रशासन, समाज, परिवार सब लड़कियों के साथ होने वाली ऐसी घटनाओं के लिए उसे ही जिम्मेदार ठहरा देते हैं कि लड़कों से दोस्ती ही क्यों करती हो, लड़कों के साथ घूमती ही क्यों हो, उनसे बात ही क्यों करती हो, क्या इस समस्या का ये समाधान है कि हम एक प्रगतिशील होते समाज को  फिर से उसी स्तर पर ले जाए जहाँ पुरूष को देखकर महिलाएँ घूंघट कर लें और अपना रास्ता बदल लें ऐसी कल्पना से ही डर लगने लगता है।
इस समाज का निर्माण हमारे हाथ में है और हमें ही सोचना होगा कि हमें इसे किस दिशा में ले जाना है, पुलिस को चाहिए ऐसी किसी भी वारदात में दोषी लड़के पर त्वरित और जल्दी कारवाई हो, परिवार लड़की के साथ मजबूती से खड़े हो और उसे ही कसूरवार ना माने, लड़के के परिवार और दोस्तों को चाहिए कि उसे एहसास दिलाए कि हर इंसान को उसकी मर्जी से जीने का हक है। हम में से हर एक को इस बात को समझना होगा और अगर नहीं समझना तो फिर कितना भी शराब, बाल-विवाह, दहेज आदि कुछ भी रोक दो रसातल में जा रहे इस समाज को नहीं रोक सकते।

(अभिषेक)


Wednesday 13 December 2017

इस देश की जमीन केवल उद्दोगपतियों की है और गरीबों के लिए फुटपाथ भी नहीं है......


टूट कर गिरा हुआ छप्पर, गिरी हुई बांस की बल्लियां, बुझा और टूटा हुआ चूल्हा, मरघट सा सन्नाटा और उसके पास आँखों में पानी और जाने कितने सवाल लिए खड़ा चायवाला जाने किस सोच में गुम था। आज वापस घर जाते हुए हुए उसके पास बिके हुए चाय और सिगरेट का हिसाब नहीं होगा,कल सुबह जल्दी जगने की हड़बड़ी नहीं होगी, जब उसे उदास देख बीबी उससे सवाल करेगी तो उन सवालों का सामना वो कैसे करेगा, कुछ ही देर में ऐसे जाने कितने सवाल मैंने उसकी आँखों में पढ़ लिए।

ऑफिस के सामने होने के कारण यह हमारे चाय का अड्डा हुआ करता है जहाँ बैठ के चाय पीते हुए जाने कितने क्रिएटिव आइडियाज हमारे दिमाग में आते हैं, कुछ अलग मीडिया हाउस से भी चाय के शौकिन मित्र यहाँ आते रहते हैं इसलिए हमारे लिए यहीं जगह चिलआउट का प्रॉपर प्लेस भी है, कोई बाहर से भी मिलने आता है तो उसे भी यही कहते हैं कि चाय की दुकान पर बैठो चाय बनवाओ हम आते हैं इसलिए भी इस जगह से एक इमोशनल कनेक्ट बना हुआ है।

आज जब उजड़े हुए इस चाय के दुकान को देखा तो लगा जैसे मेरा घर उजड़ गया है, अजीब सा लग रहा था, काफी देर मैं वहीं खड़ा रहा एक- एक कर के चायवाले को सामान बटोरते देखता रहा पूछा कि क्या हुआ तो उन्होंने कहा कि जेसीबी लेकर आए थे सब उजाड़ के चले गए। मैंने कहा क्यों तो बताया कि ये थोड़े कोई बताता है अचानक आता है ऐसे ही उजाड़ के चला जाता है।

मैं सोचने लगा कि क्या इस देश की जमीन केवल उद्दोगपतियों की है और सरकार जिसे मन करे उसे अपने हिसाब से एलॉट कर देती हैं क्या गरीबों के लिए फुटपाथ भी नहीं है जहाँ ये अपनी जीविका चलाने भर कुछ कमाई कर सके। अगर नियम है तो केवल इनके लिए क्यों है उन मॉल्स के लिए क्यों नहीं है जो अपनी जमीन पर तो मॉल बना लेते हैं बाकि वहां आने वाली गाड़ियाँ सड़कों पर पार्क होती हैं। सड़क पर या फुटपाथ पर दुकान लगाना गलत है लेकिन फिर अपनी जीविका चलाने के लिए ये कहाँ जाएं। शहर के बाहर जाकर चाय की टपरी नहीं ना लगाएंगे।

हर बार चुनावों में यही सुनता हूँ गरीबों का कल्याण करने वाली, गरीबी दूर हटाने वाली, गरीबों की सरकार ये अलग बात है कि गरीबी के बदले गरीबों को ही ये दूर भगाने लगती है। हर बार हम मोहरों की तरह वोट देने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं, हर बार गरीब कह के हमें ही लूटा जाता है, हमारे ही वोट से ये वीआईपी हो जाते हैं और हम वैसे के वैसे। जो आपके द्वार पर आकर खुद को गरीबों का बेटा, चायवाला बताकर आपसे वोट ले जाता है जीतते ही उसे आपसे घिन आने लगती है। वो शासक बन जाता है और आपके लिए दरबार लगाता है और इसे अपनी शान समझता है, आप अपने मन से चाहें तो उसे मिल नहीं सकते। वो  जीत कर शहर को स्वच्छ बनाने के लिए आपके चाय के टपरे को उजड़वा देता है।
इस स्मार्ट होते शहर में ये चाय के टपरे, सब्जी वाले, ठेले वाले सब बदनुमा दाग की तरह लगने लगते हैं जिन्हें उजाड़ना हर सरकार को जरूरी लगता है क्योंकि स्मार्ट शहर में हर चीज मॉल में बिकती हुई ही सुंदर लगती है।

(अभिषेक)