Wednesday 13 December 2017

इस देश की जमीन केवल उद्दोगपतियों की है और गरीबों के लिए फुटपाथ भी नहीं है......


टूट कर गिरा हुआ छप्पर, गिरी हुई बांस की बल्लियां, बुझा और टूटा हुआ चूल्हा, मरघट सा सन्नाटा और उसके पास आँखों में पानी और जाने कितने सवाल लिए खड़ा चायवाला जाने किस सोच में गुम था। आज वापस घर जाते हुए हुए उसके पास बिके हुए चाय और सिगरेट का हिसाब नहीं होगा,कल सुबह जल्दी जगने की हड़बड़ी नहीं होगी, जब उसे उदास देख बीबी उससे सवाल करेगी तो उन सवालों का सामना वो कैसे करेगा, कुछ ही देर में ऐसे जाने कितने सवाल मैंने उसकी आँखों में पढ़ लिए।

ऑफिस के सामने होने के कारण यह हमारे चाय का अड्डा हुआ करता है जहाँ बैठ के चाय पीते हुए जाने कितने क्रिएटिव आइडियाज हमारे दिमाग में आते हैं, कुछ अलग मीडिया हाउस से भी चाय के शौकिन मित्र यहाँ आते रहते हैं इसलिए हमारे लिए यहीं जगह चिलआउट का प्रॉपर प्लेस भी है, कोई बाहर से भी मिलने आता है तो उसे भी यही कहते हैं कि चाय की दुकान पर बैठो चाय बनवाओ हम आते हैं इसलिए भी इस जगह से एक इमोशनल कनेक्ट बना हुआ है।

आज जब उजड़े हुए इस चाय के दुकान को देखा तो लगा जैसे मेरा घर उजड़ गया है, अजीब सा लग रहा था, काफी देर मैं वहीं खड़ा रहा एक- एक कर के चायवाले को सामान बटोरते देखता रहा पूछा कि क्या हुआ तो उन्होंने कहा कि जेसीबी लेकर आए थे सब उजाड़ के चले गए। मैंने कहा क्यों तो बताया कि ये थोड़े कोई बताता है अचानक आता है ऐसे ही उजाड़ के चला जाता है।

मैं सोचने लगा कि क्या इस देश की जमीन केवल उद्दोगपतियों की है और सरकार जिसे मन करे उसे अपने हिसाब से एलॉट कर देती हैं क्या गरीबों के लिए फुटपाथ भी नहीं है जहाँ ये अपनी जीविका चलाने भर कुछ कमाई कर सके। अगर नियम है तो केवल इनके लिए क्यों है उन मॉल्स के लिए क्यों नहीं है जो अपनी जमीन पर तो मॉल बना लेते हैं बाकि वहां आने वाली गाड़ियाँ सड़कों पर पार्क होती हैं। सड़क पर या फुटपाथ पर दुकान लगाना गलत है लेकिन फिर अपनी जीविका चलाने के लिए ये कहाँ जाएं। शहर के बाहर जाकर चाय की टपरी नहीं ना लगाएंगे।

हर बार चुनावों में यही सुनता हूँ गरीबों का कल्याण करने वाली, गरीबी दूर हटाने वाली, गरीबों की सरकार ये अलग बात है कि गरीबी के बदले गरीबों को ही ये दूर भगाने लगती है। हर बार हम मोहरों की तरह वोट देने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं, हर बार गरीब कह के हमें ही लूटा जाता है, हमारे ही वोट से ये वीआईपी हो जाते हैं और हम वैसे के वैसे। जो आपके द्वार पर आकर खुद को गरीबों का बेटा, चायवाला बताकर आपसे वोट ले जाता है जीतते ही उसे आपसे घिन आने लगती है। वो शासक बन जाता है और आपके लिए दरबार लगाता है और इसे अपनी शान समझता है, आप अपने मन से चाहें तो उसे मिल नहीं सकते। वो  जीत कर शहर को स्वच्छ बनाने के लिए आपके चाय के टपरे को उजड़वा देता है।
इस स्मार्ट होते शहर में ये चाय के टपरे, सब्जी वाले, ठेले वाले सब बदनुमा दाग की तरह लगने लगते हैं जिन्हें उजाड़ना हर सरकार को जरूरी लगता है क्योंकि स्मार्ट शहर में हर चीज मॉल में बिकती हुई ही सुंदर लगती है।

(अभिषेक)





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