"आरक्षण" जबसे जन्म हुआ है इसे सुनता आया हूँ और बिना सोचे समझे इसे अपने लिए अभिशाप मानते आया हूँ ....वैसे मुझे अभी तक इसकी वज़ह से किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ा है लेकिन इसकी वज़ह से होने वाले अन्तर का पता तो है ही कम से कम. ......
संविधान ने हमारे लिए समानता का अधिकार की व्यवस्था की है (अनुच्छेद १४ से १ ८ ) जब संविधान निर्माण हो रहा था तब वाकई इस देश में SC /ST की हालत बहुत ही बुरी थी जिसे सामान्य हालत में लाने के लिए और उन पर भी समानता का अधिकार लागु करने के लिए आरक्षण जरुरी था .....वे आर्थिक, सामाजिक, राजनितिक हर क्षेत्र में पछडे हुए थे…… अतः उनके लिए 10 वर्ष के लिए आरक्षण देने का प्रस्ताव रखा गया जो उचित भी था और किसी ने इसकी आलोचना नहीं कि…… धीरे धीरे ये समय बढ़ता गया ...मुझे जैसा लगता है तब संविधान निर्माताओं ने सोचा होगा की अगले 10 वर्ष में अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेंगे और पिछड़े तबको को सबके साथ सामान रूप से ला खड़ा करेंगे जो नहीं हो सका .....अब आज़ादी के 67 वर्ष बाद भी हम उस लक्ष्य को नहीं पा सके हैं ये कितनी बड़ी विडंबना है…. यहाँ तक की कुछ नए लोग भी पिछड़े हो गए है…… जाने ये कैसा विकास है की जहाँ दिन प्रति दिन लोग और जातियां संपन्न और समृद्ध होनी चाहिए वो पिछड़ती जा रही हैं और अपने पिछड़ेपन को ऐसे दिखा रही हैं जैसे यही उनका विकास है और सरकार भी उनकी तुस्टी-पूर्ती के लिए उन्हें आरक्षण का तोहफा देने में लगी हुई है… जैसे नए पे OBC आरक्षण .......इसके अलावा कई जातियां इसमे शामिल होने के लिए आन्दोलन कर रही हैं। देर सबेर उनका नाम भी आरक्षितों की श्रेणी में आ ही जायेगा ........
सामान्य जाती के लोगो की स्थिति जस की तस बनी हुई है, तब भी वैसी ही थी और आज भी वैसी ही है कोई परिवर्तन नहीं जबकि मैंने अपनी आँखों से देखा है ऐसे सामान्य जाति के लोगो की जिसके पास ना खाने को ढंग का खाना है न पहनने को ढंग के कपडे फिर उनके बछो की पढाई की बात कौन करे ......
आज हर engineering और medical entrance exam के form की fee 2000rs से कम नहीं है जब कोई फॉर्म ही नहीं भर पायेगा तो परीक्षा की बात कौन करे और यहाँ तो उनके पहनने खाने की समस्या है तो पढने की बात कौन करे .....
सरकार की राजनीती जातिगत समीकरणों पे टिकी है ऐसे में सामान्य की बात कौन सोचेगा क्योकि इनके चुनाव में भाग लेने और न लेने से कोई फर्क नहीं पड़ता ......कही my (मुस्लिम,यादव ) काम करता है तो कही भूरा बाल साफ़ करो (भूमिहार,ब्राह्मण ) का नारा इन्ही राजनेताओ के द्वारा बुलंद किया जाता है….
एक देश एक भेष सब कहावत है जबकि सच्चाई ये है की हम सबको आपस में बाँटने का काम ही सरकार ने किया है…
मुझे याद है मेरे कॉलेज में अक्सर ये बहस का मुद्दा होता था की किस जाति की scholarship आई है…किसका एडमिशन किस कोटे में हुआ है.
अगर जल्द ही व्यवस्था को नहीं रोक गया तो धीरे धीरे जो आग सबके अंदर सुलग रही है वो विस्फोट का रूप ले लेगी और ये देश अपने ही आतंरिक एकता को नहीं बचा सकेगा और हमारे विकसित राष्ट्र होने का सपना चकनाचूर हो जाएगा ………