कानून
से बँधे हाथ अपने सुरक्षा में ही अक्षम
पिछले
कुछ दिनों से आए दिन एक खबर अक्सर पढ़ने को मिल जा रही है कि फलाना जगह लड़कियों
ने नशे में पुलिस की पिटाई कर दी। लड़कियों को रोकने के लिए जब तक महिला पुलिस आती
है तब तक ये मर्द पुलिस वाले निरीह भाव से लड़कियों की गालियाँ और मार खाते रहते
हैं। बीते दो दिनों मे ऐसी खबर मैं पढ़ चुका हूँ। एक में मुम्बई थाने में नशे में
धुत लड़की ने थाने में आके पुलिस को गालियाँ दी और मारा क्योंकि उसे साथी के साथ
रैश ड्राइविंग के लिए पकड़ा गया था। दूसरा मामला आगरा का है जिसमें दिल्ली से
ताजमहल घुमने आई लड़कियों ने पहले तो सुरक्षा घेरा तोड़ा और जब पुलिस ने रोकने की
कोशिश की तो मोदी जी के नाम की धमकियों के साथ पुलिस वालों की पिटाई भी की। जब तक
महिला कॉँन्सटेबल आती मर्द पुलिस वालों की इज्जत तार तार हो गई थी।
कानून
आत्मरक्षा का अधिकार सबको देता है चाहे वो आम नागरिक हो या कानून का मुलाजिम, लेकिन कानून के
लंबे हाथों ने खुद इस कदर इन्हें बाँधा हुआ है कि ये हाथ बाँधे हुए मार खाने को
विवश हैं। देश में महिला पुलिस की संख्या इतनी नहीं है कि हर जगह उन्हें तैनात
किया जा सके लेकिन अपनी आजादी का इस तरह फायदा उठाना कहाँ तक उचित है?
पिछले
कुछ दिनों से उच्च शिक्षा के लिए शहर जाने वाले लड़कियों की संख्या में इजाफा हुआ
है और ये अच्छा संकेत है कि अभिभावक लड़कियों को भी अच्छी से अच्छी शिक्षा देने के
प्रति सजग हुए हैं। लेकिन शहर की चकाचौंध और आजादी इनपे इस कदर हावी हो जाती
है कि सही गलत को समझने में कई बार गलतियाँ हो जाती हैं। उड़ता पंजाब में दिखाया भी
गया है कि कैसे ये नशे की आदी हो जाती हैं ये और हाल में ये बात भी सामने आई है कि
लड़कियों में नशे का प्रचलन काफी बढ़ा है। दिल्ली में हौजखास, गुड़गाँव और अक्सर
रेव पार्टी में पकड़े जाने की खबर इसके गवाह हैं।
अपनी
जीवन को चुनने की स्वतंत्रता और आजादी सभी को है संविधान भी हमें इसका अधिकार देता
है लेकिन इसके साथ कुछ युक्तियुक्त निर्बंधन(reasonable restrictions) भी हैं
ताकि हम अपने अधिकारों का बेवजह इस्तेमाल ना कर सकें। साथ में कुछ मौलिक कर्तव्य
भी बताए गए हैं ताकि सबकुछ सुचारू रूप से चल सके। ये अलग बात है कि हम केवल अपने
अधिकारों के लिए लड़ते हैं कर्तव्यपालन पर ध्यान नहीं देते।
खैर
मुद्दे पर आते हैं फिर से कि जब लड़कियों के नशे में होकर हंगामा करने की खबरें
मीडिया के माध्यम से छोटे शहरों में पहुँचती हैं तो वहाँ के लोग इसे लड़कियों को
बाहर नहीं भेजने के पीछे के तर्क के रूप में इस्तेमाल करते हैं कि इसीलिए वो अपनी
लड़की को बाहर नहीं भेजते! देखिए ये लड़कियाँ क्या कर रही हैं? ये अलग बात है कि
कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनपर इन बातों का कोई असर नहीं होता।
कुल
मिलाकर बात ये है कि कब तक पुलिस वाले ऐसे पिटते रहेंगे? ऐसी लड़कियों से पुलिस वालों को पिटने से
बचाने के लिए कानून में संसोधन हो वरना जो अपनी और अपने इज्जत की रक्षा नहीं कर
पाएगा वो कानून की रक्षा क्या करेगा?? और लड़कियाँ भी अपने आजादी के मायने समझे और इसे
सकारात्मक रूप मे लें और विकास के लिए इस्तेमाल करें। मस्ती भी करें लेकिन इस कदर
नहीं की आपकी छवि को धक्का लगे।
(लेख का
उद्देश्य कही से भी लड़कियों के आजादी पर सवाल उठाना नहीं है बस कुछ निर्दोष पुलिस
वाले की पिटाई देख कर वेदनास्वरूप लिखा गया है।)
(अभिषेक)
(अभिषेक)