हम गिरे हुए लोग हैं हमारा कोई ईमान धर्म नहीं.
जी हाँ ये बात ये बात मैं पूरे होशोहवास में कर
रहा हूँ। हम डिजर्व ही नहीं करते किसी भी धर्म को पूजना क्योंकि मैंने तो बचपन से
यही सुना है और पढ़ा है कि मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना लेकिन हम वही कर रहे
हैं, भले
खुद कर रहे हों या किसी के इन्फ्लुएंस में आ के लेकिन यही सच है वरना दुनिया का
कौन सा ऐसा धर्म है जो बलात्कार को जायज मानता हो या धर्म की आड़ में किसी
बलात्कारी को सपोर्ट करता हो।
मैंने जब पढ़ा कि आसिफा के कातिलों को बचाने के
लिए वकीलों ने ऐसा हंगामा किया किया कि पुलिस को चार्जशीट दायर करने में 6 घंटे लग
गए तो मुझे ये लगा कि हम किस युग में जी रहे हैं? हम क्या कर रहे हैं? क्या सारे सवाल
सरकार से होंगे, सिस्टम से होंगे, क्या आपकी औकात है कि आप खुद से सवाल कर सकें कि
हम क्या कर रहे हैं।
मैं पूरे होशोहवास में ये बात कर रहा हूँ धर्म के
नाम पर हंगामा करने वालों से कि मैं धर्म की कोई ठोस परिभाषा पूछूं कि धर्म क्या
है तो कोई बता पाएगा। ये महज संयोग की बात है कि मैं हिन्दू ब्राह्मण परिवार में
जन्मा। मैं दलित हो सकता था, मैं मुसलमान हो सकता था, मैं ईसाई, यहूदी, जैन, बौद्ध
कुछ भी हो सकता था लेकिन क्या वो मेरा चुनाव होता? ऐसा होता तो सब समाज के सबसे उपरी पायदान में
जन्म लेना चाहते। क्या अभी जो मैं स्वतंत्र रूप से लिख रहा हूँ यही
दलित होने पर लिख सकता? क्या आत्मविश्वास को भी जाति,धर्म का मोहताज होना
चाहिए?
क्या हिन्दू के साथ हुआ बलात्कार मुसलमान के साथ
हुए बलात्कार से अलग होता है, क्या किसी मुसलमान की चीखें हिन्दू लड़की की चीखों
से कम है, क्या इन चीखों को धर्म के आधार पर विभाजित किया जा सकता है?
हम क्या कर रहे हैं हम क्यों कर रहे हैं कभी पूछा
है खुद से अगर आसिफा आपकी बेटी होती (भगवान ना करे ऐसा हो) तो आप ऐसा ही करते।
ये कैंडल मार्च, ये सोशल मीडिया पर जस्टिस फॉर
आसिफा चला के कुछ हासिल नहीं होगा। लड़ना है तो अपने परिवार से लड़िए अगर वो
हिन्दू मुसलमान में फर्क करता हो, लड़िए अगर वो बेटे के मुकाबले बेटी को कम आजादी
देता हो, लड़िए अगर वो किसी और जाति के चाय पीने के लिए अलग ग्लास और खाने के लिए
अलग थाली रखता हो।
इतनी जल्दी कुछ नहीं बदलेगा क्योंकि हम भी धारा
के साथ उसी में शामिल हो जाते हैं और वही मानते हैं जो हमारा परिवार हमारा समाज आज
तक मानते आया है लेकिन अब आपको तय करना है कि आप क्या चाहते हैं।
नारी का अपमान तो महाभारत काल से होता आया है
लेकिन वहां भी कोई कृष्ण था लेकिन अब ये आपको तय करना है कि मौका मिलने पर आप
दुशासन बनेंगे या कृष्ण?
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