Saturday 12 March 2016

IIMC का सफरनामा- 1


आज जब वाराणसी के लिए टिकट कटा रहा था तो अचानक दिल की धड़कनें बढ़ने लगी। इतने दिनों में पहली बार ये एहसास हुआ कि कुछ हीं दिनों में ये सब खत्म होने वाला है। ऐसा नहीं कि ये पहली बार हो रहा है, इससे पहले भी इंजीनियरिंग खत्म होने के बाद जब कॉलेज छोड़ रहा था तो कुछ ऐसा हीं लगा था। लगा था जैसे कि दिल के अंदर एक खाली जगह सा बन आया है जिसे कुछ भी कर के मैं भर नहीं पा रहा हूँ, कुछ है जो छूटता जा रहा है जिसे कितनी कोशिश कर के भी मैं पकड़ नहीं पा रहा हूँ। तब मैंने फैसला किया था कि अब कहीं भी जाऊँगा तो खुद को आइसोलेट कर के रखूँगा, किसी भी जगह ज्यादा घुलुंगा-मिलुंगा नहीं और ना हीं ज्यादा अपनापन बनाकर रखूँगा ताकि जब उस जगह को छोड़ूं तो कुछ भी छूटता हुआ मैंने सा ना लगे और इसे सहजता के साथ स्वीकार कर सकूँ।
इंजीनियरिंग के बाद नौकरी के दौरान और उसके बाद भी मैंने ना कोई नया मित्र बनाया और ना हीं किसी जगह से खुद को जोड़ा लेकिन IIMC में आने के बाद एक नई दुनिया और नए लोगों से मेरा परिचय हुआ। यहाँ कब कैसे और कितने मित्र इतनी जल्दी बन गए कि कुछ पता हीं नहीं चला। जब तक खुद को रोकता, संभालता,ये बताता कि भाई ये कोई स्थाई नौकरी का ठिकाना नहीं जो तू इतना खो रहा है इस दुनिया में, ये बस चंद महीने का कोर्स है और उसके बाद ये चेहरे जाने फिर कब दिखे तो खुद के दायरे को समेट, उसे छोटा कर वरना तकलीफ़ खुद को होनी है पर बात वहीं है कि “दिल है कि मानता नहीं।“
कब IIMC के कैंटीन के चाय से शुरू हुआ सफ़र रोड के उस पार बर्मा जी के ग्लास वाली चाय के रास्ते से होता हुआ पूर्वांचल के दहिया जी की चाय तक पहुँच गया पता हीं नहीं चला। ये सफ़र महज एक साल से भी कम का हो लेकिन इसके मकाम कई हैं। मैंने सोचा था कि मैं इस सफ़र के बारे में नहीं लिखुँगा लेकिन अब जब शुरू किया है तो IIMC में रहते हुए या यहाँ से जाने के बाद भी मैंने जिस सफ़र को जिया है, समय समय पर उससे आपका परिचय जरूर कराऊँगा ।
(अभिषेक)


1 comment:

  1. Bahut achha likha h...bhasha me bhaav bhi hai.....tumhara blog aj phli bar pda....achha lga bhai..

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