सवाल पर इतना कोहराम क्यों?
आमतौर पर सवाल पूछना हमारे जीवन का अभिन्न अंग है। नीजि तौर पर हम अपन
जीवन में कदम कदम पर सवाल करते हैं और या तो जवाब से संतुष्ट होकर आगे बढ़ते हैं
या तो उचित जवाब नहीं मिलने पर झल्लाते हैं।
मैं भी बचपन से आज तक अपने क्लास में सवाल पूछने के कारण ही चर्चित
रहा हूँ और दोस्तों के बीच मेरी प्रतिष्ठा भी इसी कारण रही है। बी.टेक के दौरान तो
हालत ये थी कि जब दोस्तों का क्लास में मन नहीं लगता था तो वो कहते थे कि अबे
मिश्रा टीचर को किसी सवाल में उलझाओ ना तब तक हम गप्पे मारते हैं। टीचर ने भी
हमेशा यथासंभव अपने उत्तर से संतुष्ट ही करना चाहा जिसके लिए मैं उनका आभारी हूँ।
एक लोकतांत्रिक देश में सवाल उस लोकतंत्र की आत्मा को जिंदा रखता है
शायद तभी संसद और विधानमंडलों में हर सांसद और विधायक को सवाल पूछने का अधिकार
दिया गया है। हमारी किसी विधायक या सांसद में आस्था औप विश्वास रहता है तभी वोट
देकर उसे चुनते हैं और ऐसे ही सरकार बनती है तो क्या उन्हें चुनने के बाद हम उनसे
सवाल का अधिकार खो देते हैं?
वर्तमान के राजनीतिक परिदृश्य में सरकार से किए जाने वाले सवाल को
बुरी तरह उलझाया जा रहा है मसलन हर सवाल को देशभक्ति की भावना से कैसे जोड़ कर
देखा जा रहा है, अगर सरकार के हर फैसले के आप समर्थन में हैं तो आप देशहित में हैं
वरना देश छोड़ कर चले जाइए। क्या ये किसी सवाल का जवाब हो सकता है कि देश छोड़ कर
चले जाओ, ये सवाल ही हैं जिसने UPA सरकार के तमाम
घोटालों का पर्दाफास किया तब तो ऐसे ऊंगलियाँ नहीं उठाई जाती थी, अब अगर अखलाक को
भीड़ ने मार दिया और आपने सवाल किया तो आप देश के खिलाफ हैं, रेलवे के बढ़ते किराए
पर सवाल किया तो आप देश के खिलाफ हैं, फर्जी इनकाउंटर पर सवाल किए तो आप देश के
खिलाफ हैं, अरूणाचल-उत्तराखंड के सवाल पर कुछ कहा किए तो आप देश के खिलाफ हैं, गैस
सब्सिडी खत्म होने पर सवाल किया किए तो आप देश के खिलाफ हैं, OROP पर चल रहे विवाद पर सवाल किया किए तो आप देश के
खिलाफ हैं, और अब 500-1000 के नोट बदलने में हुए परेशानी पर सवाल करो तो भी आप देश
के खिलाफ हैं, इतना ही नहीं ऐसे तमाम मामले हैं जहाँ आपको तपाक से देश के खिलाफ कह
दिया जाएगा।
जहाँ तक सेना की बात है जिसपर सवाल उठाना आजकल अपराध हो गया है तो
क्या सेना में भ्रष्टाचार नहीं होते, मैं अपने गाँव से सेना में गए ऐसे तमाम लोगों
को जानता हूँ जिनका मेडिकल दलालों को पैसा देकर क्लियर हुआ है और आज भी होता है,
आए दिन इसके लिए भी गिरफ्तारियाँ होती हैं। विदित हो कि अगस्टा वेस्टलैण्ड मामले
में पूर्व उप वायुसेना प्रमुख जे एस गुजराल औऱ एस पी त्यागी को उनकी संदिग्ध
भूमिकाओं के लिए सीबीआई ने तलब भी किया था।
ऐसा नहीं है कि मैं सेना का बलिदान कम आँक रहा हूँ ये सही है कि हम
उनके वजह से महफूज हैं और घरों में चैन की नींद सोते हैं लेकिन कम से कम अपने
राजनीतिक फायदे के लिए उनके बलिदान पर तो रोटियाँ ना सेकी जाएं। पूर्व सेना प्रमुख
वी. के. सिंह आज सांसद हैं तो क्या उनसे उनके क्षेत्र की जनता सवाल करे कि इन 5
सालों में आपने क्षेत्र के विकास के लिए क्या किया तो वो ये कह कर टाल देंगे कि वो
सेना से हैं उन्होंने सीमा पर देश के काफी कुछ किया है इसलिए उनसे सवाल नहीं होना
चाहिए।
यही सेना से रिटायर होने के बाद जवान तमाम सिक्यूरिटी एजेंसियों में
काम करते हैं तो भी क्या आप उनके साथ ऐसा ही व्यवहार करते हैं। मेरे कॉलेज हॉस्टल
के वार्डन भी हमेशा सेना से रिटायर लोग ही रहे हैं अभी सेना का नाम जपने वाले मेरे
कुछ मित्रों का तब उनके साथ कैसा व्यवहार था ये आज भी याद है मुझे । और ये
तर्क कि आप दो दिन लाइन में खड़े नहीं हो सकते और सेना आपके लिए हमेशा खड़ी रहती
है याद रखिएगा भविष्य में आप पर ही भारी पड़ने वाला है जब आपके हर परेशानी को यही
कह कर टाल दिया जाएगा जैसे कभी बिजली की किल्लत हो गई जो कि आम है अपने देश में तो
सरकार यही कहा करेगी कि सेना 24 घंटे बिना बिजली के खड़ी रहती है और आप बिना बिजली
के नहीं रह सकते, ट्रेन में टिकट नहीं मिलने पर भी कहा जाएगा कि सेना देश के लिए
हमेशा खड़ी रहती है और आप एक दिन की यात्रा खड़े होकर नहीं कर सकते, ऐसे ही आपके
हर सवाल जिसका जवाब सरकार के पास नहीं होगा ऐसे तर्कों से आपका मुँह बंद कर दिया
जाएगा।
तो किसी सवाल को बस ये कह कर खारिज़ देना कि ये देशहित के खिलाफ है
मेरे अनुसार तार्किक नहीं क्योंकि सवाल हैं तो लोकतंत्र है और ये हमारा अधिकार भी
है और मैंने पढ़ा भी है कि
“अधिकार खोकर बैठ
जाना यह महा दुष्कर्म है
न्यायार्थ अपने बंधु को भी दंड देना धर्म है”
(अभिषेक)
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