Thursday 10 November 2016

500-1000 की बंदी और जीवन का यथार्थ


मैं गाँव में था और छठ के अवसर पर नाटक का मंचन चल रहा था जब ये ब्रेकिंग न्यूज सामने आई कि 500 और 1000 के नोट अब नहीं चलेंगे, पहले तो मुझे भी विश्वास नहीं हुआ कि अचानक ऐसा कैसे हो सकता है लेकिन अब गाँव में भी इंटरनेट का इस्तेमान करने वाले युवा हो गए हैं तो खबर की प्रमाणिकता भी मिली।

सुबह तक गाँव में ये खबर पूरी तरह फैल गई थी लेकिन किसी को समझ नहीं आ रहा था कि ये क्या हो रहा है। दरअसल छठ के अवसर पर बाहर से कमा के घर आने वाले अपने साथ 500 और 1000 के नोट ही लेकर आते हैं ताकि रास्ते में परेशानी ना हो और घर, गृहस्थी के तमाम काम वो घर आने के बाद उन पैसों से कराते हैं लेकिन अचानक हालात ऐसे हो गए हैं पैसा रहते हुए भी सारे गरीब हो गए हैं।

मैं ये नहीं कह रहा है कि ये गलत है, हो सकता है काला धन पर लगाम लगाने के लिए ये अत्यावश्यक हो लेकिन भारत जिसे गाँवों का देश कहते हैं वहाँ इसका क्या परिणाम हुआ है उससे अवगत करा रहा हूँ जो कि मैं देख के आया हूँ।

मेरे गाँव पजिअरवा प.चम्पारण बिहार से 12 किलोमीटर दूर सुगौली जंक्शन है जहाँ से लोगों को बाहर जाने के लिए जरूरी रेलगाड़ियाँ मिलती हैं। यहीं पर तमाम बैंक और एटीएम भी हैं, गाँव से सुगौली आने के लिए जीप मिलता है जिसका किराया 25 रूपए है। सुगौली में मिले मेरे गाँव के गिरिन्द्र मिश्र ने बताया कि वो लुधियाना रहते हैं और छठ मे गाँव आए हैं। उनके पास 50 रूपए थे और बाकि 500 को नोट है उन्हें भागलपुर जाना था जीप के 25 देने के बाद अब बस 25 बचे हैं, टिकट काउंटर पर कहा जा रहा है कि खुल्ला लेकर आओ तब टिकट मिलेगा वो परेशान हैं कि भागलपुर कैसे जाएँ।

गाँव में ही दोपहर को मेरे एक काका के यहाँ एक आदमी आया जिसने बताया कि पत्नी के इलाज के लिए उसने सूद पर 5000 रूपए लिए थे जिसमें 500 और 1000 के नोट थे जिसे लेकर वो इलाज के लिए सुगौली गया था लेकिन डॉक्टर ने पहले तो 100 के नोट नहीं होने से देखने से मना कर दिया लेकिन लाख मिन्नत करने के बाद देखा भी तो दवाई के दुकान वाले ने दवा देने से मना कर दिया क्योंकि उसके पास 500, 1000 के ही नोट थे। जब वह सूद वाले को पैसा वापस करने गया तो उसने भी नहीं लिया कि वो इसका जिम्मेदार नहीं है।
एक आदमी ने मुजफ्फरपुर से फोन किया कि उसके पास बस 500 हैं सारे एटीएम बंद हैं और बस वाला पैसा नहीं ले रहा है वो क्या करे कोई जान पहचान हो तो मदद करे। ऐसे बहुत सारे लोग हैं जो भयंकर रूप से परेशान हैं, मैं खुद जुगाड़ लगा कर कहीं से 1000 के चेंज लाया तो 500 पिता जी को दिए कि दो-चार दिन काम चलाएं और 500 ले कर बनारस आया।

ऐसे ही जाने कितने लोग अस्पताल, स्टेशन और कई जगहों पर परेशान घूम रहे हैं। अपनी परेशानियों को बताने का मतलब मोदी या सरकार का विरोध ही नहीं होता, ये सारी परेशानियाँ आपके परिवार को भी झेलनी पड़ रही होंगी, उम्मीद है देश के लिए इतना करना पड़ता है टाइप तर्क नहीं देंगे क्योंकि मैं यहाँ किसी का विरोध समर्थन नहीं मैं भी अपने मन की ही बात कर रहा हूँ जिसका मुझे भी हक है शायद।

(अभिषेक)

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