आत्मस्वाभिमान किसी उम्र का मोहताज नही होता, मैं ये भी नही कह सकता कि वो पारिवारीक प्रिष्ट्भूमि से आता है लेकिन ये जरुर है कि उसका उम्र से कोई लेना देना नही है। ये उस बच्चे में भी हो सकता है जो इस शब्द का मतलब तक नहीं जानता। दरअसल इन सब बातों को बताने के पीछे एक वजह है और वो है एक छोटा सा लड्का जो मुझे मेरे एक मित्र के विद्दालय में मिला।
मै हाल में हीं अपने घर गया हुआ था, अचानक वहां से एक दिन दोस्तो के साथ नेपाल घुमने का प्लान बना जो वहा से महज़ 45km दूरी पर है रास्ते में ही एक मित्र का स्कूल है तो सोचा उसे भी साथ ले लेते हैं। वो छुट्टी लेने गया तब तक हमलोग एक बच्चे से बात करने लगे। बातों बातों में मैनें ध्यान दिया कि बच्चे के पैर में चप्पल नहीं था तो मैनें उससे पुछा कि चप्पल क्यों नहीं पहन के आये हो तो बच्चे ने बताया कि टूट गया है। धुप बहुत ज्यादा थी और ऐसे में बच्चे का ये जबाब सुन के इंसानियत के नाते थोडी भावुकता का आना तो स्वभाविक था। अलकतरे की सड्क पर नंगे पैर चल के आने का मर्म भला कौन नही समझ सकता।
मैनें कहा कि चप्पल क्यों नहीं बनवाते तो उसने कहा "पैसे नहीं नहीं हैं, पापा बाहर गये हैं कमाने, वो पैसे लेकर आयेंगे ताब चप्पल लुंगा।"
मुझे इस जबाब कि उम्मीद बिल्कुल नहीं थी। मैंनें उसे कुछ पैसे देने चाहे पर उसने साफ़ इनकार कर दिया कि नहीं वो चप्पल अपने पापा के आने के बाद हीं लेगा। कैसे भी समझाया मैं उसका बडा भाई हुं उसके पापा से वापस ले लंगा मैं तब जाके वो माना।
शिक्षा जरुरी नहीं कि आपके बडे ही दे पाये हर किसी से सिखने को मिलता है पर जरुरी उस शिक्षा का सदुपयोग। इंसान छोटी छोटी चीजें देखता तो है पर ये सोच के आगे बढ जाता है कि उसे क्या मतलब या उसके जीवन पर इससे क्या फ़र्क पडता है।
शिक्षा जरुरी नहीं कि आपके बडे ही दे पाये हर किसी से सिखने को मिलता है पर जरुरी उस शिक्षा का सदुपयोग। इंसान छोटी छोटी चीजें देखता तो है पर ये सोच के आगे बढ जाता है कि उसे क्या मतलब या उसके जीवन पर इससे क्या फ़र्क पडता है।
सरकार मिड डॆ मिल योजना चला के समझती है उसकी जिम्मेदारी पूरी हो गई और वो बहुत अच्छा काम कर रही है पर जो बाकी छोटी छोटी चीजें है क्या उसके लिये कोई व्यवहारपरक योजना नहीं बनाई जानी चाहिये?
ये तो एक बच्चे की बात है जो मेरे सामने है जाने ऐसे कितने बच्चे इस देश में हैं जो तमाम मुश्किलो से जुझ रहे हैं।
वैसे हर जिम्मेदारी सरकार पर हीं छोड देना ठीक नहीं है। ये कुछ ऐसी चीजे हैं जो हमारे आपके सामने दिखती हैं और हम अपना मुंह मोड के सरकार को कोसते हुए चल देते हैं। जरुरत है असली जरुरतमंद को समझने की और उस हद तक उसका मदद करने कि जहां तक अपना नुकसान ना होता हो वरना लानत है ऐसे विकास पर जो आपको तो सबकुछ देता हो लेकिन किसी को एक चप्पल तक नसीब ना हो।
Bahut sahi paksh dikhata hai!! Aisa hi attitude chahiye yuvaon me tabhi hum Aur hamara samaj vastvik pragati karega!!
ReplyDeleteVikas ka pehla kadam niji star per hi hota h...yadi khud aap bhagidaar nahin hain to desh ke vikas ko sochna hi galat h....WELL WRITTEN!
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