Thursday 12 October 2023

 

विकास की राह ताकते किशनगंज के पंचायत, कहां है विकास ?

देश के सबसे पिछड़े राज्यों में से एक बिहार और बिहार का सबसे पिछड़ा इलाका सीमांचल। बिहार के सबसे उत्तर-पूर्वी छोर पर बसा सीमांचल का जिला किशनगंज जो एक तरफ बंगाल से जुड़ा हुआ है तो दूसरी तरफ नेपाल से। किशनगंज जिले में कुछ गांव तो ऐसे हैं जो बंगाल से ज्यादा जुड़े हुए हैं और बिहार से कम। बिहार की बदहाली का आलम अगर आप जानते हैं तो सोचिए बिहार का सबसे पिछड़ा इलाका भला कितना बदहाल होगा।

बिहार का परिसीमन इस प्रकार का है कि किशनगंज जिला और लोकसभा क्षेत्र का गणित समझने के लिए आपको पेन और पेपर लेकर बैठना होगा। किशनगंज लोकसभा क्षेत्र में 6 विधानसभा क्षेत्र हैं किशनगंज, कोचाधामन, बहादुरगंज, ठाकुरगंज, बैसी और आमौर। अब बैसी और अमौर किशनगंज जिले का नहीं पूर्णिया का हिस्सा हैं। किशनगंज जिले में इनमें 4 विधानसभा क्षेत्र हैं किशनगंज, कोचाधामन, बहादुरगंज और ठाकुरगंज। किशनगंज जिले में सात प्रखंड हैं, किशनगंज विधानसभा में दो किशनगंज और पोठिया, कोचाधामन में एक कोचधामन, बहादुरगंज में बहादुरगंज और टेढ़ागाछ और ठाकुरगंज में ठाकुरगंज और दिघ्घलबैंक। अब परिसीमन का ऐसा आलम है कि किशनगंज प्रखंड के 6 पंचायत कोचाधामन विधानसभा क्षेत्र में हैं।

विकास का यहां ऐसा आलम है वो कहां है खोजने से भी नहीं मिलेगा। सरकार की तमाम योजनाएं यहां आते आते दम तोड़ देती हैं। किशनगंज प्रखंड का पंचायत पिछला, वार्ड नंबर 15, ये महादलित की बस्ती है और इस वार्ड में एक भी शौचालय नहीं है। बरसात के दिनों में यहां इतना पानी भर जाता है कि गर्दन तक पानी पार कर के आप अपने घर में जाना संभव हो पाता है। यहां के वार्ड सदस्य की मानें तो पेड़ पर रहने के नौबत आ जाती है। बरसात में यहां रहने वाले लोग बांस को जोड़ कर ऊंचा कर घर बनाते हैं या रोड पर रहने चले जाते हैं। यहां एक भी घर में उज्ज्वला योजना के तहत गैस नहीं मिला है। ये अभी भी लकड़ी पर खाना बनाते हैं लेकिन आप इनसे जाएं तो चाय जरूर पिलाते हैं। ये इतने अभाव में हैं कि कोई नेता इनसे झूठे वादे कर के वोट ले सकता है। पिछले कई सालों से ये यहीं पर हैं लेकिन विकास से अनंत काल की दूरी पर हैं। ये जीवन के मूलभूत सुविधाओं से ही वंचित हैं तो शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क तक तो बात भी नहीं पहुंचती। बिजली ज़रूर यहां पहुंची है वरना ये अंधेरे में रहने को विवश रहते क्योंकि किरोसिन तो अब कहीं मिलता नहीं।


ऐसे ही किशनगंज प्रखंड में ही है पंचायत दौला जिसका वार्ड नंबर 14 पूरा का पूरा कट कर महानंदा में समा गया। इसके निवासी पिछले चार साल के रोड के दोनों किनारे झोपड़ी बना कर रह रहे हैं, इनके लिए जैसे सरकार सो रही है। इसी बीच लोकसभा और विधानसभा के चुनाव भी हुए लेकिन इनकी स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया। लोगों की जमीने महानंदा में समा गई वो बेघर भी हुए और बिना जमीन वाले भी लेकिन सुनने वाला कोई नहीं। एक बुजुर्ग महानंदा की तरफ दिखाते हुए कहते हैं वो दूर मेरा घर था महानंदा ने सब ले लिया। अब मजदूरी कर के जी रहे हैं। इसी प्रखंड में एक पंचायत है पिछला जो अपने नाम के अनुरूप किशनगंज का सबसे पिछड़ा पंचायत है। यहां कुछ लोगों को उज्ज्वला गैस का कनेक्शन तो मिला है लेकिन उसे भराने के लिए कोई सुविधा नहीं क्योंकि किशनगंज जाकर गैस भरा कर लाना एक दिन की मजदूरी का नुकसान करना है। बंगाल पास होने से ब्लैक में गैस तो मिल जाएगा लेकिन उसके लिए 3000 रुपए खर्च करना समान्य परिवार के लिए लगभग असंभव ही है।  

किसी भी पंचायत में आप जाएं आपको सन्नाटे के सिवा कुछ नहीं मिलेगा क्योंकि आधी से ज्यादा आबादी रोजगार के लिए बिहार से बाहर है। यहां काम धंधे का कोई उपाय नहीं और पेट पालने के लिए पैसा कमाना जरूरी है। आलम ये है कि एक वार्ड सदस्य ने कहा कि कि वार्ड सदस्य तो हैं लेकिन कहीं नौकरी मिल जाती तो ज्यादा अच्छा होता, वार्ड सदस्य होने से पेट थोडे भरता है ना इसका कोई भविष्य है।

वैसे तो बिहार के ज्यादातर पंचायत का हाल कमोबेश ऐसा ही है लेकिन किशनगंज के किसी भी पंचायत में आप दिन में चले जाएं तो गांवों में ऐसा सन्नाटा मिलता है जैसे कोई रहता ही ना हो। कुछ बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग खोजने पर मिलते हैं, बात करने पर पता चलता है कि आधे से ज्यादा आबादी कमाने के लिए बिहार से बाहर रहती है। किसी किसी गांव में तो पलायन सत्तर फीसदी से ऊपर है। वैसे तो भारत गांवों का देश है लेकिन इन गांवों की खबरें दिखाने के लिए ना तो कोई मीडिया है ना इनकी स्थिति सुधारने के लिए कोई सरकार। आजादी के पचहत्तर सालों के बाद भी ये गांव अपने विकास की बाट जोह रहे हैं।

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