Sunday 4 October 2015

गाँधी का चम्पारण
निर्देशक : विश्वजीत मुखर्जी
गाँधी का चम्पारण दास्तान है चम्पारण के किसानों के मौजूदा हालात की, उनके संघर्षयुक्त जीवन की, उनके मरते हुए सपनों की। 1917 में पं.राजकुमार शुक्ल के अथक प्रयास के बाद चम्पारण के किसानों के हालात का जायजा लेने गाँधी जी चम्पारण पहँचे। वहाँ तीनकठिया प्रणाली से युक्त कृषि पद्धति लागू थी जिसमें किसानों को 20 कठ्ठे में से 3 कठ्ठे पर नील की खेती करनी पड़ती थी, किसानों का अत्याचार सहना पड़ता था। गाँधी जी ने जगह जगह जाकर हालात का जायजा लिया और रिपोर्ट तैयार की। अंग्रेज अधिकारी ने गाँधी को चम्पारण से चले जाने का फरमान जारी कर दिया जिसे गाँधी ने मानने से इनकार कर दिया और इस तरह सत्याग्रह की शुरूआत हुई।
अपनी चम्पारण यात्रा के क्रम में गाँधी जी ने कई विद्दालय खोले, कस्तूरबा गाँधी यहाँ आकर रहीं। आज वह सबकुछ उपेक्षा का शिकार बना हुआ है। गोरख बाबू का घर जहाँ गाँधी जी पहली बार रूके थे वह घर जीर्ण शीर्ण अवस्था में पहुँच गया है। लगभग ऐसे हीं हालात सभी जगह के हैं। बड़हरवा का विद्दालय जहाँ टूटा हुआ चरखा अभी भी खुद को संरक्षित करने की बाट जोह रहा है। यहाँ कभी बापू के पैरों के निशान भी थे जो अब ढ़ूढ़ने से भी नहीं मिलेंगे। भितिहरवा आश्रम, हजारीमल धर्मशाला(बेतिया) देखने से लगता हीं नहीं कि ये बापू की विरासत स्थली है।
सरकार ने इन स्थलों को संरक्षित करने के लिए समय समय पर आर्थिक अनुदान भी दिया जिसका बंदरबाँट हो गया और संरक्षण धरा का धरा रह गया। 2017 में सत्याग्रह के 100 वर्ष पूरे हो रहे हैं। केन्द्र सरकार द्वारा गाँधी सर्किट को पूरा करने के लिए 100 करोड़ की राशि खर्च करने की योजना है। जानकार बताते हैं कि हमेशा की तरह यह राशि भी उपर हीं उपर खर्च हो जाने हैं और वास्तविक जगह पर नहीं पहँच पाएगा। बापू ने हमें सच सोचने की, दूसरों के कल्याण करने की प्रेरणा दी। जिनका पूरा जीवन देश और मानवता के लिए समर्पित था उनके आदर्श हम भूल चुके हैं और अपने स्वार्थपूर्ति में लगे हैं।
बापू के विरासत की स्थिति ऐसी नहीं कि पर्यटक वहाँ जा सकें। कृष्णा राय(आश्रम के माली) एक डायरी दिखाते हैं जो पर्यटकों के निराशा को दर्शाती है। इस डॉक्यूमेंट्री के लिए कई लोगों से बात किया गया है जिसमें पी.के.मुखर्जी(सचिव आइ.सी.एच.आर.) व वरिष्ठ पत्रकार अरविन्द मोहन के नाम प्रमुख हैँ।
फिल्म का संपादन पक्ष अतिमहत्वपूर्ण है जिसमें गाँधी के चम्पारण आंदोलन के इतिहास को आवाज से संबोधित करते हुए वर्तमान में किसानों के हालात को दिखाया गया है। बापू के चम्पारण सत्याग्रह से आजादी के इतने वर्षों बाद भी चम्पारण के किसान अपने सुनहरे भविष्य का सपना अपनी आँखो में समेटे गरीबी में जीवन यापन करने को मजबूर हैं। अंग्रेज निलहों के अत्याचार तो खत्म हो गए लेकिन मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल ये किसान कई तरह के अत्याचार सहने को अभिशप्त हैं और किसी दूसरे गाँधी की राह देख रहे हैं।
(अभिषेक)

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