Saturday 24 October 2015

कुछ भी लिखने की मुसीबत.......


आज कुछ लिखने का मुड नहीं था, अचानक फेसबुक देखते हुए एक ऐसा पोस्ट सामने आया जिसकी उम्मीद उस इंसान से तो कतई नहीं थी जिसने उसे पोस्ट किया है। लिखा था कि तिलक, तराजू और तलवार ............. बाकि आप समझ गए होंगे क्योेंकि मायावती ने इस नारे को चुनाव में खूब भुनाया था। हो सकता है कि मेरे मित्र की मंशा किसी को भी ठेस पहुँचाने की नहीं रही हो पर क्या अभी का समय एक पढ़े-लिखे समझदार इंसान को ये लिखने की इजाज़त देता है? क्या उसकी लेखनी उससे ये सवाल नहीं करती कि उससे जुड़े लोगों की भावनाएं इससे आहत होंगी या नहीं?

आजकल समाज में नफरत का माहौल बढ़ता जा रहा है और इंटरनेट के माध्यम से इसे खूब हवा भी मिल रही है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर जिसे जो मन कर रहा है लिख रहा है। तमाम ब्लॉग सामने आ गए हैं जो जातिगत और धार्मिक भावनाओं को समान रूप से भड़काने का काम कर रहे हैँ। अनपढ़ नासमझ लोगों को समझाना फिर भी आसान है, मुश्किल तो उनके साथ है जो हर तरह से पढ़े-लिखे समझदार हैं लेकिन धर्म की बात आते हीं उनकी सोचने समझने की शक्ति चली जाती है और वो गाय के बदले एक इंसान की मौत को जायज ठहराने लगते हैं भले हीं ताउम्र गाय को एक रोटी भी ना दी हो। ऐसे समय में मुझे मार्क्स की याद आती है कि उसने धर्म को अफीम क्यों कहा क्योंकि एक आम इंसान से इतनी उम्मीद करना गैरमुनासिब नहीं है कि इंसान के जान की किमत समझे हाँ एक अफीम के नशे में धुत्त इंसान कुछ भी कह सकता है।

किसी भी हत्या को कानूनन तब तक जायज नहीें ठहराया जा सकता जब तक वो आत्मरक्षा में ना किया गया हो और इसके अलावा हत्या के लिए भारतीय कानून में फाँसी तक की सजा का प्रावधान है। मेरे कुछ मित्रों को बड़ा ऐतराज है कि मैं कर्नाटक में मरे प्रशांत पुजारी और उत्तर प्रदेश में मरे महेश पर कुछ क्यों नहीं लिखता तो भाई मेरा उद्देश्य ना किसी धर्म विशेष की हिमायत करना है और ना हीें किसी की बुराई करना। अगर मुझे मौका मिला तो मैं उन सबके लिए लिखूँगा और लड़ूँगा जिन्हें धार्मिक भावनाओं के नाम पर मारा जा रहा है लेकिन मौत का बदला मौत से लेने और गाय के बदले किसी इंसान की जान ले लेने को कभी सही नहीं ठहराउंगा।

एक अच्छे लेखक का हमेशा मकसद होना चाहिए  समाज में समरसता कायम रखना, लोगों को एक-दूसरे जोड़ना, एक-दूसरे की धार्मिक भावनाओं को समझने के लिए लोगों को प्रेरित करना लेकिन दूर-दूर तक ऐसा कोई नजर नहीं आता और जो लिखता उसे मिलती है लोगों की गालियां, धमकियां आदि।

कोई किसी भी धर्म, जाति में अपनी मर्जी से जन्म नहीं लेता और ना हीं उसे चुनने की आजादी होती है इसलिए कोई हिन्दू होता है कोई मुसलमान, कोई सवर्ण होता है कोई दलित। अब ये हमारे उपर है कि हम इसे समझे और सद्भाव से जिएं। आपका तिलक, तराजू और तलवार .............वाले जुमले का असर उसपर कतई नहीं होगा जो आपसे नफरत करता है क्योंकि वो तो दिमाग से पैदल हीं है लेकिन उस पर हो सकता है जो आपसे मोहब्बत करता है क्योंकि सब गाँधी जितने महान नहीं हो सकते कि एक थप्पड़ खा के दूसरा गाल आगे कर दें।

नफरत करने वाले और ऩफरत फैलाने वाले लोग कम हीं हैं तभी इतनी विविधता और विवादों के बावजूद इस देश की एकता कायम है और इंशाअल्लाह आगे भी कायम रहेगी। तमाम लिखने वाले मित्रों से निवेदन है कि सोच-समझ के लिखें आपके कंधों पर इस देश और इसके अखंडता व सौहाद्र का बोझ है जिसे कायम रखना है ताकि आगे कुछ ऐसा ना हो कि किसी अखलाक, प्रशांत, महेश, जीतेन्द्र, रेखा और उनके बच्चों के लिए लिखना पड़े।

(अभिषेक)


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